गुर्जर प्रतिहार राजवंश




नागभट्‌ट द्वितीय (795-833 ई.) :-

  • नागभट्ट द्वितीय की माता का नामसुंदरदेवी था।
  • वत्सराज की मृत्यु के बाद यह गुर्जर-प्रतिहारों का शासक बना।
  • इन्होंने उज्जैन और कन्नौज को जीत लिया और कन्नौज को अपनी राजधानी बनाया।
  • नागभट्‌ट द्वितीय  के कन्नौज विजय का वर्णनग्वालियर अभिलेख में मिलता है।
  • मान्यखेत के राष्ट्रकूट शासक गोविन्द तृतीय ने नागभट्‌ट द्वितीय को हराकर कन्नौज पर अधिकार कर लिया।
  • गोविन्द तृतीय के साम्राज्य विस्तार के बारे में इतिहासकारों ने लिखा है कि – “गोविन्द तृतीय के घोड़े हिमालय से कल्याकुमारी तक बिना किसी शत्रु क्षेत्र में प्रवेश किए सीधे दौड़ सकते थे”।
  • इनका दरबार भीनागावलोक का दरबार कहलाता था।



  • नागभट्‌ट द्वारा मुसलमानों की पराजय का साक्ष्यप्रबंध नामक ग्रन्थ से मिलता है। इसके अनुसार चहमान नरेश गोविन्दराज (गूवक प्रथम) ने सुल्तान बेग वरिस को हराया।
  • गोविन्दराज नरेश नागभट्‌ट का सामंत था।
  • सुल्तानबेग वरिस सिंध का मुस्लिम गवर्नर था।
  • मुसलमानों के विरुद्ध नागभट्‌ट द्वितीय के संघर्ष का प्रमाणखुम्माण रासो नामक ग्रन्थ से मिलता है।



मुंगेर का युद्ध (810 . बिहार) :-

  • नागभट्‌ट द्वितीय ने बंगाल के शासक धर्मपाल को पराजित किया।
  • बकुलाअभिलेख में नागभट्‌ट द्वितीय ने परमभट्टारक महाराजाधिराज परमेश्वर की उपाधि धारण की।
  • नागभट्‌ट द्वितीय ने गंगा नदी में जीवित जल-समाधि ली।

मिहिरभोज (836-885 ई.) :-

  • इनकी माता का नामअप्पा देवी था।
  • इनका सर्वप्रथम अभिलेखवराह अभिलेख है जिसकी तिथि 893 विक्रम संवत् (836 ई.) है।
  • यह प्रतिहार वंश ही नहीं वरन् प्राचीन भारत वर्ष का एक महान शासक माना जाता था।
  • मिहिरभोज को बंगाल के शासक धर्मपाल के पुत्र देवपाल ने पराजित किया।
  • मिहिरभोज ने क्रमश: नारायणपाल व विग्रहपाल को बारी-बारी से हराया था।
  • 851 ई. में अरब यात्रीसुलेमान ने भारत की यात्रा की। सुलेमान ने बताया कि मिहिरभोज मुसलमानों का सबसे बड़ा शत्रु था।
  • मिहिरभोज का साम्राज्य विस्तार – हिमालय से लेकर दक्षिण में बुंदेलखण्ड तक और पूर्व में उत्तरप्रदेश से लेकर पश्चिम में गुजरात और काठियावाड़ तक विस्तृत था।



  • इन्होंने ग्वालियर प्रशस्ति की स्थापना करवाई थी।
  • कश्मीरी कविकल्हण ने अपने ग्रन्थ राजगरंगिनी में मिहिरभोज के साम्राज्य का उल्लेख किया।
  • मिहिरभोज द्वारा रचित ग्रन्थ – श्रृंगारप्रकाशयुक्तिकल्पतरुराज मृगांक हैं।
  • ग्वालियर अभिलेख में मिहिरभोज नेआदिवराह तथा दौलतपुर अभिलेख में प्रभास की उपाधि धारण की।
  • इनके समय में चाँदी और तांबे के सिक्के, जिन परश्रीमदादिवराह अंकित रहता था।



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