Rajasthan History

History of Rajasthan – राजस्थान का इतिहास 5000 वर्ष पुराना है। राजस्थान के इतिहास को तीन भागो में विभाजित किया जा सकता है

राजस्थान के प्रमुख राजवंश एंव उनकी उपलब्धियां

गुहिल वंश मेवाड़कागुहिल वंश गुहिल अबुलफजल ने मेवाड़ के गुहिलों को ईरान के बादशाह नौशेखाँ आदिल की सन्तान माना है। मुहणौतनैणसी ने अपनी ख्यात में गुहिलों की 24 शाखाओं का जिक्र किया है। इन सभी शाखाओं में मेवाड़ के गुहिल सर्वाधिक प्रसिद्ध रहे हैं। गुहादित्य या गुहिल इस वंश का संस्थापक था। पिताका नाम – शिलादित्य, माता का नाम – पुष्पावती। स्थापना […]

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राजस्थान के इतिहास के प्रमुख स्त्रोत

राजस्थान के इतिहास के प्रमुख स्त्रोत अभिलेखों के अध्ययन को ‘ऐपियोग्राफी’ कहा जाता है। अभिलेखों से वंशावली, शासकीय नियम, उपाधियाँ, विजय, नागरिकों के द्वारा किए गए निर्माण कार्य, वीर पुरुषों का योगदान तथा सतीयों की महिमा की जानकारी मिलती है। प्रारंभिक शिलालेख की भाषा संस्कृत थी जबकि मध्यकाल में फारसी, उर्दू, संस्कृत व राजस्थानी भाषा

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राजस्थान की रियासतें एवं ब्रिटिश संधियाँ, 1857 की क्रांति

राजस्थान की रियासतें एवं ब्रिटिश संधियाँ, 1857 की क्रांति राजस्थान की रियासतें एवं ब्रिटिश संधियाँ भारत में ईस्ट इंडिया का आगमन 1600 ई. में हुआ था। 1757 ई. में प्लासी के युद्ध के बाद ईस्ट इंडिया कम्पनी ने बंगाल में राजनीतिक सत्ता प्राप्त की। EIC द्वारा सम्पूर्ण भारत पर राजनीतिक सत्ता की स्थापना 1764ई. के

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राजस्थान की प्रमुख प्रागैतिहासिक सभ्यतायें

राजस्थान की प्रमुख प्रागैतिहासिक सभ्यतायें राजस्थान के प्रमुख पुरातात्विक स्थल पाषाणकालीन सभ्यता – दर (भरतपुर), बागोर (भीलवाड़ा), तिलवाड़ा (बाड़मेर)। हड़प्पा सभ्यता – कालीबंगा (हनुमानगढ़), आहड़ (उदयपुर), गिलुण्ड (राजसमंद) में। ताम्रयुगीन सभ्यता – गणेश्वर (सीकर), बालाथल (उदयपुर), नोह (भरतपुर) आदि स्थलों पर। कालीबंगा (हनुमानगढ़) –सरस्वती (दृषद्वती) नदी के तट पर (वर्तमान घग्घर नदी) विकसित। कालीबंगा का

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राजस्थान के इतिहास में चर्चित महिलाएँ

राजस्थान के इतिहास में चर्चित महिलाएँ 1.हाड़ीरानी – बूँदी की राजकुमारी, सलुम्बर (उदयपुर) के सरदार चुड़ावत की नवेली पत्नी, जिसने युद्ध के लिए प्रस्थान करते समय सरदार चुड़ावत को अपना सिर काटकर (निशानी के रूप मे) भेज दिया था। हाड़ीरानी का वास्तविक नाम सलह कंवर था। 2.पन्नाधाय (गुर्जर महिला) – मेवाड़ के राजकुमार विक्रमादित्य व उदयसिंह की

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राजस्थान के प्रमुख व्यक्तित्व

राजस्थान के प्रमुख व्यक्तित्व अर्जुनलाल सेठी –जयपुर निवासी, 1907 में जयपुर में जैन वर्धमान पाठशाला स्थापित की। आजीवन स्वतंत्रता आंदोलन की गतिविधियों में भाग लिया तथा वेलूर जेल में रहे। हिन्दू-मुस्लिम एकता के लिए प्रयास किये। अर्जुनलाल सेठी ने 1907 ई. में जयपुर में जैन शिक्षा सोसायटी (जैन वर्धमान विद्यालय) की स्थापना की, यह भारत

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राजस्थान एकीकरण

राजस्थान का एकीकरण – ऋग्वेद में राजस्थान के लिए ‘ब्रह्मवर्त’ शब्द का प्रयोग किया गया है। – रामायण में राजस्थान के लिए ‘मरुकान्तर’ शब्द का प्रयोग किया गया है। – राजस्थान शब्द का प्रथम प्रयोग विक्रम सवंत 682 के बसंतगढ़ शिलालेख, सिरोही में खीमल माता मंदिर से मिलता है। बसंतगढ़ शिलालेख में राजस्थानियादित्य शब्द का

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राजस्थान में प्रजामंडल आंदोलन

राजस्थान में प्रजामण्डल एवं उत्तरदायी शासन की स्थापना   वर्ष 1927 में अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद् की स्थापना के साथ ही सक्रिय राजनीति का काल आरम्भ हुआ। कांग्रेस का समर्थन मिल जाने के बाद इसकी शाखाएँ स्थापित की जाने लगी। वर्ष 1931 में रामनारायण चौधरी ने अजमेर में देशी राज्य लोक परिषद् का

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राजस्थान के प्रमुख किसान आंदोलन

बिजौलिया किसान आंदोलन- (1897-1941 ई.) –        बिजौलिया को प्राचीन काल में ‘विजयावल्ली‘/विन्धपवल्ली के नाम से जाना जाता था। –        बिजौलिया व भैंसरोड़गढ़ के मध्य भाग को ऊपरमाल के नाम से जाना जाता है। बिजौलिया शिलालेख में ऊपरमाल के क्षेत्र को ‘उत्तमाद्रि‘ कहा गया है। –        बिजौलिया ठिकाने की स्थापना अशोक परमार द्वारा की गई। बिजौलिया

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1857 की क्रांति

राजस्थान में 1857 की क्रांति राजस्थान की रियासतों ने1818 ई. में ईस्ट इंडिया कंपनी के साथ संधि करके बाह्य आक्रमणों के प्रति निश्चिंत हो गए, लेकिन कंपनी द्वारा उन संधि की शर्तों के अनुसार आंतरिक मामलों में भी हस्तक्षेप किया जाने लगा। 1757 ई. के प्लासी के युद्धसे 1857 की क्रांति के मध्य ब्रिटिश शासन ने

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चौहान राजवंश

चौहान वंश (शाकम्भरी एवं अजमेर के चौहान) चौहानों का प्रारम्भिक राज्य नाडोल (पाली) था। पृथ्वीराज रासो में चौहानों को ‘अग्निकुण्ड’ से उत्पन्न बताया गया। पं. गौरीशंकर हीराचंद ओझा चौहानों को सूर्यवंशी मानते हैं। पृथ्वीराज विजय एवं हम्मीर महाकाव्य ग्रन्थ में भी इन्हें सूर्यवंशी माना है। कर्नल टॉड ने चौहानों को विदेशी (मध्य एशियाई) माना है।

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राठौड़ राजवंश

       राव बीका (1465-1504 ई.) :- बीकानेर के राठौड़ वंश का संस्थापक राव बीका मारवाड़ के शासक राव जोधा का पुत्र था। इनकी माता का नाम‘नौरंग दे’ सांखला था। इनका विवाह पुंगल के‘राव शेखा भाटी’ की पुत्री ‘रंग दे’ से हुआ था। अपने पिता के ताना देने के कारण ये 1465 ई. में जांगल प्रदेश में आ गये। गोदारा (पांडु)

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गुर्जर प्रतिहार राजवंश

गुर्जर-प्रतिहार बादामी के चालुक्य नरेश‘पुलकेशिन द्वितीय’ के ‘एहोल अभिलेख’ में गुर्जर जाति का उल्लेख सर्वप्रथम हुआ है। उत्तर-पश्चिम भारत में गुर्जर-प्रतिहार वंश का शासनछठी से बाहरवीं सदी तक रहा है। प्रसिद्ध इतिहासकार‘रमेश चन्द्र मजूमदार’ के अनुसार गुर्जर-प्रतिहारों ने छठी सदी से बाहरवीं सदी तक अरब आक्रमणकारियों के लिए बाधक का काम किया। छठी शताब्दी के द्वितीय चरण में उत्तर-पश्चिम भारत में एक नए राजवंश की स्थापना

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कच्छवाहा राजवंश

कच्छवाहा वंश ‘कच्छवाहा‘ अपने आपको भगवान श्री राम के पुत्र ‘कुश‘ की संतान मानते हैं। संस्थापक – दुलहराय (तेजकरण), मूलतः ग्वालियर निवासी था। 1137 ई. में उसने बड़गुजरों को हराकर नवीन ढूँढाड़ राज्य की स्थापना की। दुलहराय के वंशज कोकिलदेव ने 1207 ई. में मीणाओं से आमेर जीतकर अपनी राजधानी बनाया, जो 1727 ई. तक

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मेवाड़ का इतिहास

मेवाड़ का इतिहास के Part – 1 मेवाड़ राज्य का इतिहास मेवाड का प्राचीन नाम –  महाभारत काल में मेवाड़ शिवी जनपद के अन्तर्गत आता था। शिवी की राजधानी मध्यमिका (वर्तमान चित्तौड़गढ़) थी। –  मेदपाट – मेव जाति की अधिकता के कारण मेवाड़ को मेदपाट कहा गया। –  उदसर – भीलों का मुख्य क्षेत्र होने

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