राजस्थान में प्रजामंडल आंदोलन




बीकानेर

  • बीकानेर के महाराजा गंगासिंह प्रतिक्रियावादी व निरंकुश शासक थे।
  • गंगासिंह (1880-1943 ई.) प्रथम भरतपुर के बाद शांति समझौते पर हस्ताक्षर करने वाले एकमात्र भारतीय प्रतिनिधि व वर्ष 1921 में स्थापित नरेन्द्र मण्डल के संस्थापकों में से एक थे।
  • बीकानेर क्षेत्र के प्रारंभिक नेता कन्हैया लाल ढूँढ़ व स्वामी गोपाल दास थे, इन्होंने वर्ष 1907 में चूरू में सर्वहितकारिणी सभा स्थापित की।
  • सर्वहितकारिणी सभा ने चूरू में लड़कियों की शिक्षा हेतु ‘पुत्री पाठशाला‘ व अनुसूचित जातियों की शिक्षा के लिए ‘कबीर पाठशाला‘ स्थापित की गई। महाराजा इस रचनात्मक कार्य के प्रति भी आशंकित हो उठे और षड्यंत्र बताकर उन्हें प्रतिबंधित कर दिया।
  • 26 जनवरी, 1930 को स्वामी गोपाल दास व चन्दनमल बहड़ ने सहयोगियों के साथ चूरू के सर्वोच्च शिखर धर्मस्तूप पर तिरंगा फहराया।


  • अप्रेल, 1932 में जब लंदन में महाराजा गोल मेज सम्मेलन में भाग लेने गए तो ‘बीकानेर एक दिग्दर्शन‘ नामक पेम्पलेट बाँटे गए, जिसमें बीकानेर की वास्तविक दमनकारी नीतियों का खुलासा किया गया। महाराजा ने लौटकर सार्वजनिक सुरक्षा कानून लागू किया।
  • स्वामी गोपालदास, चंदनमल बहड़, सत्यनारायण सर्राफ, खूबचन्द सर्राफ आदि को बीकानेर षड्यंत्र केस के नाम पर गिरफ्तार कर लिया गया।
  • अक्टूबर, 1936 में मघाराम वैध ने कलकत्ता में बीकानेर प्रजामण्डल की स्थापना की।
  • 4 अक्टूबर, 1936 को प्रमुख नेता शीघ्र ही निर्वासित कर दिए गऐ, जिनमें वकील मुक्ताप्रसाद, मघाराम वैध व लक्ष्मीदास शामिल थे। रघुवरदयाल ने 22 जुलाई, 1942 को बीकानेर प्रजा परिषद् की स्थापना की, जिसका उद्देश्य महाराजा के नेतृत्व में उत्तरदायी शासन की स्थापना करना था।
  • वर्ष 1943 में गंगासिंह जी की मृत्यु के बाद शार्दुल सिंह गद्दी पर बैठे। वे भी दमन में विश्वास रखते थे।
  • द्वारका प्रसाद नामक छठी कक्षा के बालक को संस्था से निकाला गया क्योंकि उसने उपस्थिति गणना के समय जयहिन्द बोल दिया था।
  • 26 अक्टूबर, 1944 को बीकानेर दमन विरोधी दिवस मनाया गया जो राज्य में प्रथम सार्वजनिक प्रदर्शन था। इसी बीच भारत में राजनीतिक गतिविधियाँ तेज हो गई और महाराजा ने उत्तरदायी शासन की घोषणा की।


  • 30 जून, 1946 में रायसिंह नगर में हो रहे प्रजा परिषद् के सम्मेलन में पुलिस ने गोलीबारी की। बदली हुई परिस्थितियों को देखते हुए सत्ता हस्तान्तरण के लक्षण जब दिखने लगे तो प्रजा परिषद् का कार्यालय पुनः स्थापित किया गया।
  • वर्ष 1946 में ही दो समितियों, संवैधानिक समिति व मताधिकार समिति की स्थापना की गई। रिपोर्ट को लागू करने का आश्वासन तो दिया गया पर कोई ठोस कार्यवाही नहीं हो पाई व उत्तरदायी शासन की मांग अधूरी ही रही।
  • 16 मार्च, 1948 में जसवंत सिंह दाउदसर के नेतृत्व में मंत्रिमण्डल बना, जिसे प्रजा परिषद् ने अस्वीकृत कर दिया और उसके मंत्रियों ने इस्तीफा दिया। 30 मार्च, 1949 को वृहत्तर राज्य के निर्माण के साथ रघुवर दयाल, हीरालाल शास्त्री के मंत्रिमण्डल में सम्मिलित हुए।


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