मेवाड़ का इतिहास

 




मेवाड़ का इतिहास-9

राणा लाखा (1382-1421 ई.):-

राणा लाखा के समकालीन मारवाड़ का शासक राव चूड़ा था।

राव चूड़ा का पुत्र-रणमल, पुत्री-हंसाबाई

हंसाबाई का विवाह पहले मेवाड़ राजकुमार कान्हा के साथ प्रस्तावित था, लेकिन रणमल ने अपनी बहिन हंसाबाई का विवाह सशर्त “हंसाबाई का पुत्र ही मेवाड़ का उत्तराधिकारी होगा” लाखा से करवाया।

हंसाबाई से प्राप्त पुत्र मोकल था।

राणा लाखा का बड़ा पु­त्र राणा चुंडा ने जीवन भर विवाह नहीं करने तथा मेवाड़ की सेवा करने की प्रतिज्ञा ली। इस कारण इन्हे मेवाड़ का “भीष्मपितामाह” एवं “मेंवाड़ का राम” कहा जाता है।

 




राणा मोकल (1421-1433 ई.) :-

इन्हे तुलादान पद्धति के जनक कहा जाता है।

मोकल ने जीवनकाल में कुल 25 बार तुलादान किया।

दरबारी विद्वान – विष्णुभट्‌ट, योगेश्वर भट्‌ट।

प्रमुख शिल्पी –  धन्ना, पन्ना, मन्ना, वीसल

संरक्षक – रणमल राठौड़

ये मेवाड़ में वेदशालाओं को स्थापित कराने वाला शासक था।

इन्होने झालावाड़ में विष्णु/वराह मंदिर का निर्माण करवाया।

एकलिंगनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार राणा मोकल ने करवाया, इस कारण इस मंदिर को वर्तमान में मोकल मंदिर कहा   जाता है।

रणमल राठौड़ ने मोकल के काल में मेवाड़ में राठौड़ों का प्रभाव बढ़ाते हुए उच्च पदो पर नियुक्तियाँ शुरू की।

राठौड़ो के बढ़ते प्रभाव से नाखुश होकर चाचा व मेरा और महपा पंवार नामक सरदारो ने राणा मोकल की हत्या की।

राणा मोकल का उत्तराधिकारी राणा कुंभा हुआ।

 




राणा कुंभा (1433-1468 ई.) :-

जन्म – 1403 ई.

पिता – मोकल

माता – सौभाग्यदेवी

पत्नी – कुंभलमेरू

पुत्र – रायमल, ऊदा

पुत्री – रमाबाई (रमाबाई संगीत व साहित्य में निपुण थी इस कारण जावर शिलालेख (उदयपुर) में वागीश्वरी कहा गया हैं।)

राज्याभिषेक – 1433 ई. चित्तौड़गढ़

गुरू – हिरनांद आर्य

संगीतगुरू – सारंग व्यास

सहायक संगीत गुरू – कान्हा व्यास

 




राणा कुंभा की प्रमुख उपाधियाँ :- (अभिनव भरताचार्य नत्य भारत)

दानगुरू             युद्धगुरू            हिन्दु सुरताण

हालगुरू            संगीतगुरू          राणे-राय

छापगुरू            साहित्य गुरू       राव-राय

स्थापत्य गुरू      अश्वपति            नरपति

शैवगुरू

 




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