मेवाड़ का इतिहास

 




मेवाड़ का इतिहास – 26

 मेवाड़ का इतिहास

  • मई 1658 ई. में राजसिंह ने मुगल ठिकानों पर अधिकार करने के उद्देश्य से टीका दौड़ प्रारम्भ की।
  • उत्तराधिकार संघर्ष में औरंगजेब ने राजसिंह से सैनिक सहायता माँगी।
  • 1658 ई. में औरंगजेब के शासक बनते ही राजसिंह ने अपने पुत्र सुल्तान सिंह को मुगल दरबार में सेवा हेतु भेजा।

औरंगजेब व राजसिंह के मध्य तनाव के कारण-

  • चारूमति विवाद (1660 ई.)- किशनगढ़ शासक रूपसिंह की पुत्री चारुमति से औरंगजेब विवाह करना चाहता था। लेकिन चारुमति औरंगजेब से शादी नहीं करना चाहती थी इस कारण उन्होंने राजसिंह से विवाह किया।
  • 1669 ई. में औरंगजेब ने मंदिर तुड़वाने के आदेश जारी किए लेकिन राजसिंह मंदिर पुजारियों को शरण देकर मंदिरों का निर्माण कार्य करवाते रहे।
  • 1678 ई. में अजीतसिंह व दुर्गादास राठौड़ को शरण दी। अजीत सिंह के लालन पालन हेतु केलवा की जागरी दी।
  • 2 अप्रैल, 1679 ई. को औरंगजेब ने जजिया कर लगाया जिसका विरोध राजसिंह ने किया।




  • औरंगजेब 3 सितम्बर, 1679 को दिल्ली से राजसिंह पर आक्रमाण करने हेतु रवाना हुआ।
  • अजमेर पहुँचकर औरंगजेब ने अपने सेनापति शहजादे अकबर द्वितीय व हसन अली खाँ को नियुक्त किया।
  • दिसम्बर, 1679 ई. में सेना अजमेर से मेवाड़ पर आक्रमण करने हेतु रवाना हुई।
  • राजसिंह मुगल सेना के आते ही गोगुन्दा की पहाड़ियों में चले गए।
  • राजसिंह के सेनापति सलुम्बर के रतनसिंह चुण्डावत थे। इनकी पत्नी का नाम- हाड़ी रानी सहल कँवर था।
  • मुगलों का यह आक्रमण असफल रहा लेकिन माण्डलगढ़ पर अधिकार कर लिया।
  • 22 अक्टूबर, 1680 को कुंभलगढ़ के पास आढो गाँव में खाने में विष मिला दिये जाने के कारण राजसिंह की मृत्यु हुई।




राजसिंह के काल की स्थापत्य कला

  • राजसिंह ने राजसमंद झील का निर्माण राजसमंद में करवाया।
  • गोमती नदी के पानी को रोककर राजसंमद झील का निर्माण करवाया गया।
  • राजसमंद झील की नींव 1 जनवरी, 1662 ई. को रणछोड़ राय के द्वारा रखी गई।
  • इस झील का निर्माण पूर्ण अप्रैल 1665 ई. को हुआ।
  • इस झील का प्रारंभिक नाम राजसमुद्र था।
  • इस झील की कुल लागत 1,05,07,608 रुपये आई।
  • इस झील के पास राजसमंद की स्थापना की गई।

राज प्रशस्ति-राजसिंह ने राजसमंद झील के किनारे इस प्रशस्ति की रचना करवाई। इस प्रशस्ति के लेखक रणछोड़ भट्ट तैलंग थे।

राजप्रशस्ति की विशेषताएँ- 1676 ई. में संस्कृत भाषा में रचित।

 




निर्माण कार्य

– 25 काली शिलाओं के ऊपर रचित

– 1106 श्लोक

– 24 सर्गों/भागों में विभक्त

– विश्व की सबसे बड़ी प्रशस्ति

– मेवाड़-मुगल संधि का उल्लेख

– राजसिंह से जगतसिंह द्वितीय तक का इतिहास उल्लेखित है।

  • श्रीनाथ जी मंदिर का निर्माण- नाथद्वारा (राजसमंद) नाथद्वारा का प्राचीन नाम सिहाड़ था।
  • निर्माण प्रारम्भ 1669 ई. में हुआ तथा पूर्ण 10 फरवरी, 1672 में हुआ।
  • इस मंदिर की मूर्ति वृन्दावन (उत्तरप्रदेश) से लाई गई तथा इसके पुजारी दामोदर व रामवतार थे।
  • द्वारिकाधीश मंदिर का निर्माण- कांकरौली (राजसमंद)
  • अम्बेमाता मंदिर- उदयपुर।
  • जनासागर तालाब का निर्माण बाड़ी गाँव उदयपुर में करवाया गया।
  • रूगासागर तालाब का निर्माण उदयपुर में करवाया गया।
  • देबारी घाटी का किला उदयपुर में बनवाया गया।
  • सर्वऋतु महल का निर्माण राजसमंद में करवाया गया।
  • राजसिंह की पत्नी रामरस दे ने उदयपुर में त्रिमुखा (जया) बावड़ी का निर्माण करवाया।




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