मेवाड़ का इतिहास – 22
हल्दी घाटी का युद्ध-18 जून, 1576 राजसमंद महाराणा प्रताप व मानसिंह के मध्य
- परिणाम = अनिर्णायक
- अप्रत्यक्ष रूप से अकबर की सेना इस युद्ध में पराजित हुई क्योंकि अकबर का मूल उद्देश्य पूर्ण नहीं हुआ था।
- प्रताप के हाथी रामप्रसाद को मुगल सेना युद्ध के पश्चात् अकबर के पास ले गई तथा अकबर ने इसका नाम परिवर्तित करके पीरप्रसाद रखा।
- इस युद्ध के दौरान मुगल सेना के हाथी-गजमुक्ता, गजा/गजराज, मर्दाना व नगाला शामिल थे।
- इस युद्ध के दौरान मुगल सेना में जोश मिहत्तर खाँ ने बादशाह अकबर के आने की झूठी अफवाह फैलाकर भरा।
- इस युद्ध के दौरान महाराणा प्रताप ने बहलोल खाँ के घोड़े सहित दो टुकड़े कर दिए।
- इस युद्ध के के दौरान प्रताप का घोड़ा चेतक घायल होने के कारण प्रताप ने युद्ध भूमि का मैदान छोड़कर बलीचा गाँव (राजसमंद) पहुँचे, जहाँ पर चेतक ने अन्तिम साँस ली।
- महाराणा प्रताप युद्ध भूमि के बाहर जाने के पश्चात् प्रताप का राजमुकुट झाला बीदा ने धारण किया तथा वीर गति को प्राप्त हुए।
- चेतक की समाधि/छतरी – बलीचा गाँव (राजसमंद) में है।
- गिरधर आसिया द्वारा रचित संगत रासौ के अनुसार शक्तिसिंह व महाराणा प्रताप की मुलाकात बलीचा गाँव में हुई।
- शक्ति सिंह ने अपना घोड़ा केटक/त्राटक महाराणा प्रताप को सौंपा, तत्पश्चात् महाराणा प्रताप कोल्यारी गाँव (उदयपुर) पहुँचे।
- इस युद्ध भूमि के झाला बीदा, रामसिंह (ग्वालियर), रामदास राठौड, कृष्णदास चूंडावत, हरिसिंह आड़ा इत्यादि राजपूत सरदार लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए।
इस युद्ध के उपनाम:-
मेवाड़ की धर्मोपल्ली – कर्नल जेम्स टॉड
गोगुन्दा का युद्ध – अब्दुल कादिर बदायूँनी
खमनौर का युद्ध – अबुल फजल
बादशाह बाग – एल. श्री वास्तव
रक्त तलाई
हाथियों का युद्ध
- हल्दीघाटी युद्ध का सजीव वर्णन बदायूँनी ने अपने ग्रन्थ “मुन्तखाब- उत्त – तवारिक” में किया।
- बदायूँनी इस युद्ध में उपस्थित था तथा इसने राजपूत सैनिकों के खून से अपनी दाढ़ी रंगवाई।
- प्रताप कोल्यारी गाँव के पश्चात् कुंभलगढ़ दुर्ग पहुँचे।
- महाराणा प्रताप ने स्वभूमिविध्वंस की नीति एवं छापामार पद्धति अपनाते हुए गोगुन्दा में रसद सामग्री के आवाजाही रास्ते बंद कर दिए।
- रसद सामग्री की कमी के कारण मुगल सेना गोगुन्दा को छोड़कर अजमेर लौटी।
- प्रताप ने गोगुन्दा पर अधिकार कर यहाँ का कार्यभार मांडण कूंपावत को सौपा।