राजस्थान के प्रमुख किसान आंदोलन




गुर्जरों का आंदोलन (1936-45 ई.)

–        यह आंदोलन सर्वप्रथम बरड़ क्षेत्र से आरंभ हुआ।

–        नुक्ता (मृत्यु भोज) पर प्रतिबंध, पशु गिनती, भारी राजस्व की दर व गैर कानूनी लागों के विरोध में आंदोलन प्रारंभ हुआ।

–        इन कारणों को लेकर 5 अक्टूबर, 1936 को हिण्डौली में हुडेश्वर महादेव के मंदिर पर गुर्जर, मीणा व अन्य पशुपालकों व किसानों की एक सभा हुई।

–        21 अक्टूबर, 1936 को बूँदी सरकार ने अपराध कानून संशोधन अधिनियम 1936 पारित किया।

–        1939 ई. में पुन: गुर्जरों का आंदोलन लाखेरी (बूँदी) में आरम्भ हुआ।

–        3 सितम्बर, 1939 को गुर्जरों ने लाखेरी में तोरण की बावड़ी पर एक सभा की, जिसमें भंवरलाल जमादार, गोवर्धन चौकीदार व सीमेण्ट फैक्ट्री के एक कर्मचारी राम निवास तम्बोली ने इसमें नेतृत्वकारी भूमिका निभाई।

–        मार्च, 1945 तक शुल्क मुफ्त चराई की छूट किसानों की जोत के अनुपात में प्रदान की और आंदोलन शांत किया।




बीकानेर किसान आंदोलन-

(i)    गंग नहर क्षेत्र का किसान आंदोलन –

         बीकानेर के गंग नहर के किसानों में पानी की मात्रा, सिंचाई कर, जमीनों की किश्ते चुकाने एवं चढ़ी रकम पर ब्याज को लेकर असंतोष था।

–        1921 ई. में जमींदार संघ की स्थापना की एवं अपनी मांगों के संबंध में राज्य सरकार को प्रार्थना पत्र दिए।

–        बीकानेर महाराजा गंगासिंह स्वयं नहरी क्षेत्र का विकास करना चाहते थे अत: लगान व पानी की दरो में छूट दी गई।




(ii)   महाजन ठिकाने का किसान आंदोलन:-

–        बीकानेर राज्य के महाजन ठिकाने के किसान अनुचित लागतों, बेगार व भू राजस्व संबंधी मांगे नहीं मानने तक लगान नहीं देने का निर्णय लिया।

–        राज्यधिकारियों की मध्यस्था से लगान में कमी करने से महाजन ठिकाने का आंदोलन शिथिल हो गया।

दुधवाखारा (चुरु) का किसान आंदोलन-        

–        1944 ई. में जागीरदार ठाकुर सुरजमल सिंह ने पुराने बकाया की वसुली के नाम पर किसानों को उनकी जोत से बेदखल कर दिया।

–        आंदोलन का नेतृत्व मघाराम वैद्य, रघुवर दयाल तथा हनुमान सिंह आर्य ने किया। खेतूबाई ने दुधवाखारा आंदोलन में महिलाओं का नेतृत्व किया।

–        हनुमान सिंह को रतनगढ़ में गिरफ्तार कर उनके विरुद्ध राजद्रोह का मुकदमा चलाया गया।




मारवाड़ किसान आंदोलन

–        मारवाड़ राज्य द्वारा 29 अक्टूबर, 1923 को मादा पशुओं के निर्यात पर प्रतिबंध हटाने से मारवाड़ से बड़ी संख्या में पशु बाहर जाने लगे। किसानों ने इसका विरोध किया।

–        हितकारिणी सभा व जयनारायण व्यास ने किसानों का नेतृत्व किया।

–        1 सितम्बर, 1924 को पशुओं एवं घास-फूस के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया। यह मारवाड़ के किसानों की विजय थी।

–        जुलाई, 1931 को खालसा क्षेत्र के किसानों ने भी बीघोड़ी (प्रति बीघा भू-राजस्व के रूप में वसूला जाने वाला राज्य का हिस्सा) के विरुद्ध आंदोलन शुरू किया।

–        किसानों के आंदोलन के जोर पकडने पर 16 जून, 1934 को बीघोड़ी में प्रति एक रूपये पर तीन आने की कमी कर दी गई, जिससे खालसा क्षेत्र में किसान आंदोलन समाप्त हो गया।




–        28 मार्च, 1942 को चण्डावल में उत्तरदायी शासन दिवस मनाने एकत्र हुए किसानों पर जागीरदार ने दमन चक्र चलाया।

         गाँधीजी ने भी इस नृशंस कृत्य की आलोचना की।

–        13 मार्च, 1947 को मारवाड़ लोक परिषद् ने डाबड़ा (डीडवाना) में एक किसान सम्मलेन में जागीरदार के सशस्त्र लोगों ने हमला कर दिया जिससे 12 व्यक्ति मारे गए।

–        डाबडा काण्ड की वंदेमातरम्‘,’लोकवाणी‘ ‘प्रजा सेवकआदि समाचार पत्रों ने कड़ी आलोचना की।




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