राजस्थान के प्रमुख राजवंश एंव उनकी उपलब्धियां




महाराणा अमरसिंह द्वितीय (1698-1710 ई.)

  • वागड़ व प्रतापगढ़ को पुनः अपने अधीन किया एवं जोधपुर व आमेर को मुगलों से मुक्त कराकर क्रमशः अजीतसिंह एवं सवाई जयसिंह को वापस वहाँ का शासक बनने में सहायता की।
  • इन्होंने अपनी पुत्री का विवाह जयपुर महाराजा सवाई जयसिंह से किया।
  1. अन्यसिसोदियाराज्य
  • मेवाड़ के राजवंश से निकले वीरों ने चार अन्य रिसायतें यथा-प्रतापगढ़, डूंगरपुर, शाहपुरा एवं बाँसवाड़ा स्थापित की। मेवाड़ के गुहिल शासक सामंतसिंह ने 1177 ई. में जालौर के शासक कीर्तिपाल (कीतू) से हारने के बाद वागड़ में परमारों को हराकर गुहिल वंश का शासन स्थापित किया। इसके वंशज डूंगरसिंह ने 1358 ई. में डूंगरपुर नगर बसाकर अपनी राजधानी बड़ौदा से डूंगरपुर स्थानान्तरित की। 1527 ई. में वागड़ का शासक महारावल उदयसिंह खानवा के युद्ध में राणा सांगा की ओर से युद्ध करते हुए शहीद हो गया। इसके बाद उसके दो पुत्रों ने वागड़ राज्य को दो हिस्सों में बांट लिया। बड़े पुत्र पृथ्वीराज ने डूंगरपुर तथा छोटे जगमाल ने बांसवाड़ा का शासन संभाला।
  • डूंगरपुर राज्य : 1527 के बाद वागड़ के डूंगरपुर क्षेत्र पर महारावल उदयसिंह के पुत्र पृथ्वीराज ने अपना शासन स्थापित किया। 1573 ई. में अकबर ने आक्रमण कर इसे जीत लिया। 1577 ई. में महारावल आसकरण ने अकबर की अधीनता स्वीकार कर ली। आसकरण के समय जोधपुर नरेश राव चन्द्रसेन ने अकबर से पराजित होकर डूंगरपुर में शरण ली थी। आसकरण की पटरानी प्रेमल देवी ने डूंगरपुर में सन् 1586 में भव्य नौलखा बावड़ी का निर्माण करवाया। यहां के शासक शिवसिंह (1730-1785 ई.) ने कपड़ा नापने का नया गज बनाया।
  • 1818 ई. में यहां के शासक महारावल जसवंतसिंह द्वितीय ने ईस्ट इंडिया कम्पनी से संधि कर उसकी अधीनता स्वीकार कर ली। सन् 1845 ई. में इनके शासन प्रबंध से असंतुष्ट होकर अंग्रेज सरकार ने इन्हें अपदस्थ कर वृन्दावन भेज दिया था।
  • बांसवाड़ा : 1527 ई. में वागड़ के गुहिल शासक महारावल उदयसिंह की मृत्यु के बाद राज्य का माही नदी के दक्षिण का हिस्सा उसके पुत्र जगमाल के हिस्से में आया। इसने बांसवाड़ा में भीलेश्वर महादेव मंदिर, फूलमहल एवं बाई का तालाब बनवाये। इसके वंशज उम्मेदसिंह ने 1818 ई. में अंग्रेजों से संधि कर ली और बांसवाड़ा राज्य की सुरक्षा का भार ईस्ट इण्डिया कम्पनी पर आ गया।


  • प्रतापगढ़ (देवलिया) : इस राज्य की स्थापना मेवाड़ घराने के राव बीका ने 1561 ई. में की थी। यहां के शासकों ने 1663 ई. में मुगलों की अधीनता स्वीकार कर ली। फलतः मेवाड़ राज्य ने प्रतापगढ़ पर बार-बार आक्रमण किये। अंत में 1818 ई. में इस रियासत ने ईस्ट इंडिया कम्पनी से संधि कर मराठों एवं मेवाड़ के आतंक से छुटकारा पा लिया परन्तु यह अंग्रेजों के चंगुल में फँस गई।
  • शाहपुरा : इस छोटे से राज्य की स्थापना मेवाड़ शासक महाराणा अमरसिंह प्रथम के पौत्र सुजानसिंह ने 1631 ई. में की थी। प्रारम्भ में यहां का शासन मेवाड़ एवं मुगलों के नियंत्रण में रहा। 18वीं सदी के बाद यहां के शासकों ने अंग्रेजों से संधि कर ली।


चौहान वंश

(शाकम्भरी एवं अजमेर के चौहान)

  • चौहानों का प्रारम्भिक राज्य नाडोल (पाली) था।
  • पृथ्वीराज रासो में चौहानों को ‘अग्निकुण्ड’ से उत्पन्न बताया गया।
  • पं. गौरीशंकर हीराचंद ओझा चौहानों को सूर्यवंशी मानते हैं। पृथ्वीराज विजय एवं हम्मीर महाकाव्य ग्रन्थ में भी इन्हें सूर्यवंशी माना है।
  • कर्नल टॉड ने चौहानों को विदेशी (मध्य एशियाई) माना है।
  • डॉ. दशरथ शर्मा बिजोलिया लेख के आधार पर चौहानों को ब्राह्मण वंशी मानते हैं।
  • चौहानों का मूल स्थान जांगलदेश मे शाकम्भरी (सांभर) के आसपास सपादलक्ष माना जाता है- इनकी राजधानी अह्छित्रपुर (नागौर) थी।
  • शाकम्भरी के चौहान वंश का संस्थापक वासुदेव को माना जाता है जिसने 551 ई. के आसपास राज्य स्थापित किया।
  • सांभर झील का निर्माण वासुदेव द्वारा करवाया गया।


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