राजस्थान के प्रमुख राजवंश एंव उनकी उपलब्धियां




बप्पारावल से सम्बन्धित प्रशस्तियाँ

  1. रणकपुरप्रशस्ति(1439) – बप्पारावल व कालभोज को अलग-अलग व्यक्ति बताया है। (देपाक/दिपा)
  2. कीर्तिस्तम्भप्रशस्ति(1460) – बप्पारावल से लेकर राणा कुम्भा तक के राजाओं के विरूद्ध उपलब्धियों व युद्ध विजयों का वर्णन (अत्रि व उसके पुत्र महेश द्वारा रचित)
  3. कुम्भलगढ़प्रशस्ति कान्हाव्यास द्वारा 1460 में बप्पारावल को ब्राह्मण या विप्रवंशीय बताया है।
  4. एकलिंगनाथकेदक्षिण द्वार की प्रशस्ति – (1488 महेश भट्ट द्वारा रचित) – बप्पारावल के संन्यास लेने का उल्लेख है।
  5. संग्रामसिंहद्वितीयके काल में 1719 में लिखी गयी। वैद्यनाथ प्रशस्ति में हारित ऋषि से बप्पारावल को मेवाड़ साम्राज्य मिलने का उल्लेख है। (रूपभट्ट द्वारा रचित)


  • मेवाड़ के राजा एकलिंग जी को वास्तविक राजा व स्वयं इनका दीवान बनकर कार्य करते थे।
  • उदयपुर के राजा राजधानी छोड़ने से पूर्व एकलिंग जी की स्वीकृति लेते थे, जिसेआसकां लेना कहा जाता था।
  • बप्पा रावल के गुरु – हारीत ऋषि (लकुलीश शैवानुगामी परम्परा के)।
  • सी.वी. वैध ने बप्पा रावल को चार्ल्स मोर्टल कहा है।
  • बप्पा रावल के वंशज अल्लट (951-953) के समय मेवाड़ की बड़ी उन्नति हुई। आहड़ उस समय एक समृद्ध नगर व एक बड़ा व्यापारिक केन्द्र था।अल्लट ने आहड़ को अपनी दूसरी राजधानी बनाया। यह भी माना जाता है कि अल्लट ने मेवाड़ में सबसे पहले नौकरशाही का गठन किया।
  • मालव के परमार शासक मुझ परमार से चित्तौड़गढ़ दुर्ग हार गया।

नोट- परमारों के प्रतापी शासक भोज परमार ने 1021-1031 तक चित्तौड़ पर शासन किया तथा चित्तौड़गढ़ में त्रिभुवन नारायण देव के मन्दिर का निर्माण करवाया।

  • इस मन्दिर का जीर्णोद्धार राणा मोकल ने करवाया। इसलिये इसे “मोकल  का समीद्धेश्वर” मन्दिर भी कहा जाता है।


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