कच्छवाहा राजवंश

 




 

जयसिंह द्वितीय या सवाई जयसिंह (1700-1743 ई.)

  • इनका वास्तविक नाम विजयसिंह था।
  • बादशाह औरंगजेब ने उसकी वाकपटुता से प्रभावित होकर उसकी तुलना जयसिंह प्रथम से की तथा उसे जयसिंह प्रथम से भी अधिक योग्य अर्थात् सवाया जानकर विजयसिह का नाम बदलकर सवाई जयसिंह कर दिया।
  • सवाई जयसिंह ने मुगलों के लिए तीन बार मराठों से युद्ध किये।
  • सवाई जयसिंह द्वारा जाटों पर मुगलों की विजय होने के उपलक्ष्य में बादशाह मुहम्मद शाह ने जयसिंह को राज राजेश्वर, राजाधिराज, सवाई की उपाधि प्रदान की।
  • सवाई जयसिंह ने मेवाड़ के महाराणा जगतसिंह द्वितीय से मिलकर 1734 ई. में हुरड़ा (भीलवाड़ा) मे राजस्थान के राजपूत राजाओं का सम्मेलन आयोजितकिया जिसका उद्देश्य सामुहिक शक्ति द्वारा मराठा आक्रमण को रोकना था।
  • वह संस्कृत, फारसी, गणित एवं ज्योतिष का प्रकाण्ड विद्वान था उसे ‘ज्योतिष शासक’ भी कहा गया है।
  • उसने ‘जयसिंह कारिका’ नामक ज्योतिष ग्रन्थ की रचना की।
  • उसने जयपुर, दिल्ली, बनारस, उज्जैन व मथुरा में वैध शालाए बनवायी जिसमें सबसे बड़ी वेधशाला (जंतर-मंतर) जयपुर की है तथा सर्वप्रथम वेधशाला दिल्ली की है।
  • उसने 18 नवम्बर, 1727 ई. में जयपुर नगर की स्थापना की। जयपुर का प्रधान वास्तुकार बंगाली ब्राह्मण विद्याद्यर भट्टाचार्य था।
     
  • नाहरगढ़ दुर्ग, जयनिवास महल का निर्माण भी करवाया।
  • सवाई जयसिंह के समय ही आमेर राज्य का सर्वाधिक विस्तार हुआ।
  • वह अंतिम हिन्दू शासक था जिसने अश्वमेघ यज्ञ का आयोजन करवाया। इस यज्ञ का पुरोहित पुण्डरीक रत्नाकर था।
  • मुगल बादशाह बहादुर शाह ने सवाई जयसिंह को आमेर की गद्दी से अपदस्थ करके विजय सिंह को आमेर का शासक बनाया तथा आमेर का नाम ‘मोमिनाबाद‘ रखा था।
  • पुण्डरीक रत्नाकर ने ‘जयसिंह कल्पदुम‘ नामक पुस्तक लिखी।




     

सवाई ईश्वरी सिंह (1743-1750 ई.)

  • महाराजा सवाई जयसिंह की मृत्यु के बाद उनके पुत्र ईश्वरीसिंह ने राजकाज संभाला। परन्तु उनके भाई माधोसिंह ने राज्य प्राप्त करने हेतु मराठों एवं कोटा-बून्दी की संयुक्त सेना के साथ जयपुर पर आक्रमण कर दिया।
  • बनास नदी के पास 1747 ई. में राजमहल (टोंक) स्थान पर हुए युद्ध में ईश्वरीसिंह की विजय हुई, जिसके उपलक्ष्य में उन्होंने जयपुर के त्रिपोलिया बाजार में एक ऊंची मीनार ईसरलाट (वर्तमान सरगासूली) का निर्माण कराया।
  • 1750 ई. में मराठा सरदार मल्हार राव होल्कर ने पुनः जयपुर पर आक्रमण किया। तब सवाई ईश्वरीसिंह ने आत्महत्या कर ली।




     

महाराजा सवाई माधोसिंह प्रथम (1750-1768 ई.)

  • जयपुर महाराजा ईश्वरीसिंह द्वारा आत्महत्या कर लेने पर माधोसिंह जयपुर की गद्दीपर बैठे।
  • माधोसिंह के राजा बनने के बाद मराठा सरदार मल्हार राव होल्कर एवं जय अप्पा सिंधिया ने इससे भारी रकम की मांग की, जिसके न चुकाने पर मराठा सैनिकों ने जयपुर में उपद्रव मचाया, फलस्वरूप नागरिकों ने व्रिदोह कर मराठा सैनिकों का कत्लेआम कर दिया।
  • महाराजा माधोसिंह ने मुगल बादशाह अहमदशाह एवं जाट महाराजा सूरजमल (भरतपुर) एवं अवध नवाब सफदरजंग के मध्य समझौता करवाया। इसके परिणामस्वरूप बादशाह ने रणथम्भौर किला माधोसिंह को दे दिया। इससे नाराज हो कोटा महाराजा शत्रुसाल ने जयपुर पर आक्रमण कर नवम्बर, 1761 ई. में भटवाड़ा के युद्ध में जयपुर की सेना को हराया।
  • 1768 ई. में इनकी मृत्यु हो गई। इन्होंने जयपुर में मोती डूंगरी पर महलों का निर्माण करवाया।




     

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