कच्छवाहा राजवंश

 




 

सवाई प्रतापसिंह (1778-1803 ई.)

  • महाराजा पृथ्वीसिंह की मृत्यु होने पर उनके छोटे भाई प्रतापसिंह ने 1778 ई. में जयपुर का शासन संभाला। इनके काल में अंग्रेज सेनापति जॉर्ज थॉमस ने जयपुर पर आक्रमण किया।
  • मराठा सेनापति महादजी सिंधिया को भी जयपुर राज्य की सेना ने जोधपुर नेरश महाराणा विजयसिंह के सहयोग से जुलाई, 1787 में तुंगा के मैदान में बुरी तरह पराजित किया।
  • प्रतापसिंह जीवन भर युद्धों में उलझे रहे फिर भी उनके काल में कला साहित्य में अत्यधिक उन्नति हुई। वे विद्वानों एवं संगीतज्ञों के आश्रयदाता होने के साथ-साथ स्वयं भी ब्रजनिधि नाम से काव्य रचना करते थे।
  • इन्होंने जयपुर में एक संगीत सम्मेलन करवाकर ‘राधागोविंद संगीत सार’ गंथ की रचना करवाई।




     

महाराजा जगतसिंह द्वितीय (1803-1818 ई.) :-

  • महाराजा सवाई प्रतापसिंह के बाद जगतसिंह द्वितीय जयपुर के शासक बने।
  • मेवाड़ महाराणा भीमसिंह की पुत्री कृष्णा कुमारी का विवाह जोधपुर शासक भीमसिंह से तय हुआ परन्तु उनकी मृत्यु हो जाने के कारण कृष्णाकुमारी का विवाह जयपुर के जगतसिंह II के साथ तय हुआ। जोधपुर शासक मानसिंह ने इसे अपना अपमान समझा तथा 1807 ई. में गिंगोली का युद्ध हुआ जिसमें जयपुर की सेना ने जोधपुर की सेना को पराजित किया।
  • जगतसिंह II पर नर्तकी रसकपुर का काफी प्रभाव था।
  • 1818 ई. में जगतसिंह II ने मराठों तथा पिण्डारियों से राज्य की रक्षा करने हेतु ईस्ट इंडिया कम्पनी से संधि की।




     

महाराजा जयसिंह तृतीय (1818-1835 ई.) :-

  • जगतसिंह II की मृत्यु के समय इनका कोई वारिस नहीं होने के कारण नरवर के जागीरदार मोहनसिंह को शासक बनाया गया।
  • जगतसिंह II की मृत्यु के समय इनकी भटियाणी रानी गर्भवती थी जिसने कुंवर जयसिंह को जन्म दिया।
  • इसके बाद जयसिंह को जयपुर के सिंहासन पर बिठाया गया।
  • इनके समय इनकी माता भटियाणी रानी तथा रूपा बढ़ारण का हस्तक्षेप अधिक रहा।
  • 1835 ई. में इनका अल्पायु में देहांत हो गया।




     

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