चौहान राजवंश




जालौर के चौहान

  • जालौर का प्राचीन नाम जाबालीपुर था जो गुर्जर प्रदेश का एक भाग था।
  • पूर्व में यहाँ प्रतिहारों का शासन था। डॉ. दशरथ शर्मा के अनुसार प्रतिहार शासक नागभट्ट प्रथम ने जालौर को अपनी राजधानी बनाया तथा जालौर दुर्ग का निर्माण भी करवाया।
  • प्रतिहारों के बाद परमारों ने इस क्षेत्र में अपना शासन स्थापित किया।
  • जालौर में चौहान वंश की स्थापना नाडोल के शासक अल्हण के पुत्र कीर्तिपाल चौहान द्वारा 1182 ई. में की गई।
  • सुन्धा पर्वत अभिलेख में कीर्तिपाल को ‘राजेश्वर’ कहा गया है तथा इसी के वंशज सोनगरा चौहान कहलाये।
  • समर सिंह ने जालौर दुर्ग को आैर अधिक सुदृढ़ बनाया तथा अपनी पुत्री का विवाह गुजरात के चालुक्य शासक भीमदेव द्वितीय के साथ किया।




  • उदयसिंह यहाँ का शक्तिशाली शासक था जिसने इल्तुतमिश के आक्रमण को विफल कर दिया था।
  • उदयसिंह के बाद चाचिंग देव जालौर का शासक बना।
  • सामंत सिंह के शासन काल में दिल्ली सुल्तान फिरोजशाह तुगलक ने जालौर पर आक्रमण के लिए सेना भेजी लेकिन वह जालौर विजय करने में असफल रहा।




कान्हड़ देव

  • 1305 ई. में कान्हड़ देव सोनगरा जालौर का शासक बना।
  • कान्हड़ देव शक्तिशाली एवं पराक्रमी शासक था जिसने जालौर राज्य का विस्तार किया।
  • दिल्ली से गुजरात व मालवा जाने के मार्ग में जालौर एक महत्वपूर्ण केन्द्र के रूप में था।
  • दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के लिए कान्हड़ देव का जालौर के शक्तिशाली शासक के रूप में होना असहनीय था।
  • कान्हड़ देव ने गुजरात जा रही अलाउद्दीन की सेना को अपने राज्य से गुजरने नहीं दिया तथा साथ ही कान्हड़ देव ने अपने सेनानायक जेता देवड़ा के नेतृत्व में गुजरात आक्रमण करके वापस आ रही अलाउद्दीन की सेना पर आक्रमण कर दिया। इस घटना से अलाउद्दीन अत्यधिक नाराज हुआ।




  • अलाउद्दीन ने 1305 ई. के आसपास अपने सेनापति के नेतृत्व में जालौर दुर्ग पर आक्रमण के लिए सेना भेजी, परन्तु कान्हड़ देव की सेना ने इस आक्रमण को विफल कर दिया।
  • 1308 ई. में अलाउद्दीन खिलजी ने पुन: जालौर आक्रमण के लिए सेना भेजी तथा उसी मार्ग में स्थित सिवाणा के दुर्ग पर आक्रमण किया परन्तु सातलदेव सोनगरा ने इस आक्रमण को विफल कर दिया। इस संघर्ष में अलाउद्दीन का सेनापति नाहरखाँ मलिक मारा गया।
  • इस घटना के पश्चात अलाउद्दीन खिलजी स्वयं सेना लेकर सिवाणा पहुँचा।
  • कान्हड़दे प्रबंध के अनुसार अलाउद्दीन ने कान्हड़ देव के सैनिक भावले परमार को लालच देकर अपनी ओर मिला लिया तथा दुर्ग के पेयजल स्रोत में गौ रक्त मिलाकर अपवित्र करवा दिया।
  • पेयजल स्रोत के अपवित्र होने तथा रसद सामग्री की कमी के कारण वीर सातलदेव सोनगरा तथा अन्य राजपूत सैनिकों ने केसरिया बाना पहनकर अलाउद्दीन की सेना पर आक्रमण कर दिया तथा मातृभूमि की रक्षा के लिए वीरगति को प्राप्त हुए।
  • इस प्रकार अलाउद्दीन का सिवाणा दुर्ग पर अधिकार हो गया तथा इस दुर्ग का नाम खैराबाद रख दिया। दुर्ग का आधिपत्य अलाउद्दीन खिलजी ने कमालुदीन गुर्ग को सौंप दिया।




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