कोटा में विद्रोह
- यहां पर क्रांति की शुरुआत 15 अक्टूबर, 1857 ई. कोलाला जयदयाल व मेहराब खां के द्वारा की गई।
- राजस्थान में सबसे ज्यादा सुनियोजित व सुनियंत्रित क्रांति कोटा में हुई। कोटा में लाला जयदयाल व मेहराब खां के समर्थन मेंनारायण व भवानी पलटन के द्वारा क्रांति की गई। नारायण व भवानी पलटन के द्वारा कैप्टन बर्टन का सिर काटकर पूरे कोटा शहर में घुमाया गया।
- क्रांतिकारियों ने कोटा के राजा रामसिंह से अंग्रेज अधिकारियों को सौंपने को कहा। रामसिंह ने डरकर अंग्रेज अधिकारियों को विद्रोहियों को सौंप दिया तो विद्रोहियों ने पॉलिटिकलएजेंट बर्टन के दो पुत्रों फ्रेंक तथा आर्थर व डॉ. सेडलर व कांटम को मार डाला।
- कोटा के शासकरामसिंह द्वितीय को क्रांतिकारियों के द्वारा कोटा दुर्ग में कैद कर दिया गया जिसे करौली के राजा मदनपाल ने रिहा करवाया।अंग्रेजों के द्वारा मदनपाल को Grand Comnander State of India की उपाधि दी गई तथा तोप सलामी की संख्या 13 से बढ़ाकर 17 कर दी गई। कोटा के रामसिंह द्वितीय के द्वारा अग्रेजों का सही समय पर साथ न देने के कारण तोप सलामी की संख्या 17 से घटाकर 13 कर दी गई।
- कोटा महाराव ने मथुराधीश मंदिर के महंत गुसाई जी महाराज को मध्यस्थ बना विद्रोहियों के साथ सुलह के प्रयास किए।
- सूर्यमल्ल मिश्रणने पिपलिया के ठाकुर को पत्र में लिखा- ‘ये लोग देशपती ठाकुर हैं जो सभी हिमालय से गले हुए निकले अर्थात् निकम्मे सिद्ध हुए है।‘
- 30 मार्च, 1858 ई. में मेजर एच.जी.रॉबर्ट्स ने करौली के राजा मदनपाल गैंता के ठाकुर चतुर्भज सिंह व पीपलदा के ठाकुर अजीत सिंह के सहयोग से कोटा शहर में विद्रोह को दबाया। कोटा शहर पर जनरल रॉबर्ट का अधिकार हो जाने पर कोटा में क्रांतिकारियों का संघर्ष समाप्त हो गया।
- कोटा में जिस भी व्यक्ति ने क्रांतिकारियों का सहयोग किया उनको दंड दिया गया तथा जुर्माना लगाया गया।
धौलपुर में विद्रोह
- धौलपुर में क्रांति की शुरुआत 27 अक्टूबर, 1857 ई. कोगुर्जर देवा के समर्थन में हुई।
- धौलपुर राजस्थान की एकमात्र रियासत थी, जहाँ विद्रोह बाहर के क्रांतिकारियों ग्वालियर, इंदौर द्वारा किया गया तथा इस विद्रोह को बाहर के सैनिकों (पटियाला) के द्वारा दबाया गया। धौलपुर में ग्वालियर व इंदौर के विद्रोही सैनिकों ने राव रामचंद्र व हीरालाल के नेतृत्व में स्थानीय सैनिकों की सहायता से विद्रोह कर राज्य पर अपना अधिकार कर लिया।
- धौलपुर के शासक भगवंत सिंह ने अंग्रेजों का साथ दिया।
टोंक में विद्रोह
- टोंक राजस्थान कीएकमात्र मुस्लिम रियासत थी, इस समय टोंक का शासक वजीरूद्दौला खां था।
- टोंक के नासिर मोहम्मद ने तात्या टोपे के साथ मिलकर टोंक पर अधिकार कर लिया।
- मुंशी जीवनलाल की डायरी से ज्ञात होता है कि टोंक के छह सौ मुजाहिद दिल्ली में मुगल बादशाह की सेवा में उपस्थित हुए।ख्वाजा हसन निजामी की पुस्तक ‘गदर की सुबह ओ शाम‘ में उल्लेख है कि मुजाहिदो के नेता ने मुगल सम्राट बहादुरशाह जफर को पाँच रूपये नजरे के प्रस्तुत किये थे। मोहम्मद मुजीब ने अपने नाटक ‘आजमाइस’ में लिखा है कि 1857 की क्रांति में टोंक की स्त्रियों ने भी भाग लिया था पुष्ट प्रमाण के अभाव में इस तथ्य को स्वीकार नहीं किया जा सका।