– राजस्थान में देश के कुल सतही जल का मात्र 1.16 प्रतिशत है। (15.86 MAF)
– राजस्थान की प्रथम सिंचाई परियोजना :- गंगनहर। (1927)
– सेम समस्या समाधान हेतु जिप्सम का प्रयोग किया जाता है।
– सेई बाँध परियोजना जवाई नदी पर निर्मित है।
– बीसलपुर परियोजना :- टोंक में बनास नदी पर राजस्थान की सबसे बड़ी पेयजल परियोजना।
– जाखम परियोजना :- प्रतापगढ़ में (1962 ई.)
जाखम बाँध :- राजस्थान का सबसे ऊँचा बाँध (81 मीटर)
– पाँचना बाँध :- करौली में 5 छोटी-छोटी नदियों (भद्रावती, बरखेड़ा, अटा, भैसावट तथा माची) के संगम पर अमेरिका के आर्थिक सहयोग से मिट्टी से निर्मित बाँध।
– आपणी परियोजना :- झुंझुनूं, चूरू व हनुमानगढ़ जिलों से सम्बन्धित परियोजना। ग्रामीण पेयजल आपूर्ति से सम्बन्धित इस योजना में जर्मनी की KFW संस्था का वित्तीय सहयोग रहा।
– सोम-कमला-अम्बा परियोजना :- डूंगरपुर (2001-02, सोमनदी पर)
– नारायण सागर परियोजना :- अजमेर। (खारी नदी पर)
– छापी परियोजना :- झालावाड़ में छापी नदी (परवन की सहायक नदी) पर निर्मित परियोजना।
– बिसाल सिंचाई परियोजना :- कोटा में।
– पार्वती जल विद्युत परियोजना :- राजस्थान व हिमाचल प्रदेश की संयुक्त परियोजना।
– पश्चिमी बनास परियोजना :- सिरोही।
– मेजा बाँध 1972 में कोठारी नदी पर भीलवाड़ा में निर्मित।
– बांकली बाँध :- जालौर में सूकड़ी नदी पर निर्मित।
– तेलिया पानी :- जिस सिंचाई के जल में कार्बोनेट की मात्रा अधिक होती है, तेलिया पानी कहा जाता है।
– अजान बाँध :- भरतपुर में गम्भीर नदी पर निर्मित।
– मोती झील :- “भरतपुर की जीवन रेखा’ की उपमा।
– तलवाड़ा झील :- हनुमानगढ़
– चूलिया देह परियोजना :- करौली।
– हथियादेह परियोजना :- बाराँ।
– भीमसागर परियोजना :- झालावाड़।
– वागन परियोजना :- चित्तौड़गढ़।
– आलनिया परियोजना :- कोटा।
– पीपलदा परियोजना :- सवाई माधोपुर।
– सरेरी परियोजना :- भीलवाड़ा।
– कछावन परियोजना :- बारां।
– बतीसा नाला सिंचाई परियोजना :- सिरोही।
– रेवा पेयजल परियोजना :- झालावाड़।
– ईसरदा बाँध परियोजना :- सवाई माधोपुर।
– ओराई परियोजना :- चित्तौड़गढ़।
– जाडला बाँध :- कठूमर (अलवर)
– मदान बाँध :- भरतपुर।
– चिकलवास बाँध :- राजसमन्द।
– रैणी बाँध :- अलवर।
– पीथमपुरी झील :- सीकर।
– कालाखोह बाँध :- दौसा।
– माधोसागर बाँध :- दौसा।
– पार्वती बाँध :- धौलपुर।
– सांकड़ा बाँध :- अलवर।
– सोम कागदर परियोजना :- उदयपुर।
– कालीसिल बाँध :- करौली।
– चिकसाना नहर घना पक्षी विहार (भरतपुर) से होकर गुजरती है।
– पहल परियोजना :- नवम्बर 1991 को सीडा (स्वीडन) के सहयोग से प्रारम्भ।
– राष्ट्रीय जलग्रहण विकास परियोजना :- जनवरी, 2001 से शुरू। मार्च 2013 में समाप्त।
– राज्य की जल नीति :- 2010
– कमान्ड क्षेत्र विकास कार्यक्रम :- 1974-75। (भारत सरकार व विश्व बैंक द्वारा सहायता प्राप्त)
– स्वजल धारा योजना :- 25 दिसम्बर 2002 को शुरू।
– सिंचाई प्रबन्धन व प्रशिक्षण संस्थान :- कोटा।
– सुजलम परियोजना :- बाड़मेर जिले के चयनित गाँवों में खारे पानी को मीठा बनाने की परियोजना। यह BARC (भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर) एवं जोधपुर स्थित रक्षा अनुसंधान प्रयोगशाला के संयुक्त प्रयासों से संचालित की गई।
– मुख्यमंत्री जल स्वावलम्बन अभियान :- 27 जनवरी 2016 को गर्दनखेड़ी (झालावाड़) से शुरूआत।
4 वर्षों में 21 हजार गाँवों को जल स्वावलम्बी बनाने का लक्ष्य।
– फोर वाटर कन्सेप्ट :- वर्षा जल, सतही जल, भू-जल, मृदा जल।
– राजस्थान नदी बेसिन एवं जल संसाधन योजना प्राधिकरण :- 5 मई, 2015
– हाइड्रोलोजी एंड वाटर मैनेजमेंट इन्स्टीट्यूट :- बीकानेर।
– राजस्थान जल क्षेत्र पुन: सरंचना परियोजना :- 21 मई, 2002 (विश्व बैंक द्वारा वित्त पोषित)
– राजस्थान लघु सिंचाई सुधारीकरण परियोजना :- 31 मार्च 2005 से दिसम्बर 2015 तक संचालित।
जापान अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग एजेंसी (जायका) द्वारा वित्त पोषित।
– एकीकृत जलग्रहण विकास कार्यक्रम :- 1989 से शुरू।
– इन्दिरा गाँधी नहर के पूर्ण होने पर राजस्थान का 16.17 लाख हैक्टेयर क्षेत्र सिंचाई से लाभान्वित होगा।
– इन्दिरा गाँधी नहर परियोजना में नहरों में पानी के प्रवाह के आकलन व नियंत्रण हेतु “स्काडा सिस्टम’ स्थापित किया गया है।
– 2 नवम्बर, 1984 को राजस्थान नहर परियोजना का नाम बदलकर इन्दिरा गाँधी नहर परियोजना कर दिया।
– सावन-भादो झील :- सिरोही।
सावन -भादो नहर परियोजना :- कोटा।
सावन-भादो महल :- डीग (भरतपुर)।
सावन-भादो कड़ाईयां :- देशनोक (बीकानेर)।
– नौलखा झील :- बूँदी।
नौलखा महल :- उदयपुर।
नौलखा बावड़ी :- डूंगरपुर।
नौलखा द्वार :- रणथम्भौर।
नौलखा मंदिर :- पाली।
नौलखा बुर्ज :- चित्तौड़गढ़।
नौलखा दुर्ग :- झालावाड़।