(vii) रायसिंह प्रशस्ति – संस्कृत भाषा में रचित यह प्रशस्ति बीकानेर दुर्ग के द्वार पर लगी हुई है। जाता नामक जैन मुनि के द्वारा इस प्रशस्ति की रचना की गई। इस प्रशस्ति से बीकानेर के संस्थापक राव बीका से लेकर रायसिंह के काल की उपलब्धियों की जानकारी मिलती है। रायसिंह के द्वारा मुगलों की सेवा की जानकारी, रायसिंह की काबूल, सिंध व कच्छ विजय का उल्लेख इस प्रशस्ति में मिलता है। दुर्ग निर्माण के साथ-साथ रायसिंह के काल की धार्मिक व सांस्कृतिक गतिविधियों का भी उल्लेख इस प्रशस्ति से प्राप्त होता है।
(viii) आमेर शिलालेख – संस्कृत भाषा में रचित इस शिलालेख में कच्छवाहा शासकों के लिए रघुवंश तिलक शब्द का प्रयोग किया गया है। इस शिलालेख से पृथ्वीराज, भारमल, भगवंतदास व मानसिंह प्रथम के बारे में जानकारी मिलती है।
(ix) जगन्नाथ राय शिलालेख – उदयपुर के जगन्नाथ मंदिर में उत्कीर्ण इस शिलालेख का निर्माण जगतसिंह के काल में हुआ। इसकी रचना तेलंग ब्राह्मण, कृष्ण जी भट्ट के द्वारा की गई। यह शिलालेख सपनों के मंदिर में उत्कीर्ण है। इस शिलालेख से हल्दी घाटी युद्ध तथा जगत सिंह के द्वारा किए गए धार्मिक कार्यों की जानकारी मिलती है।
(x) राज प्रशस्ति –
राज सिंह के काल में नौ चौकी नामक स्थान पर 25 शिलालेखों पर संस्कृत भाषा में रणछोड़ भट्ट के द्वारा इसकी रचना की गई। इसे भारत का सबसे बड़ा शिलालेख माना जाता है। राजसिंह के बारे में जानकारी व राजसमंद झील के निर्माण की जानकारी भी इसी प्रशस्ति से प्राप्त होती है।
(xi) फारसी शिलालेख – ढ़ाई दिन के झोपड़े का शिलालेख। अजमेर स्थित अढाई दिन के झौपड़े की गुंबज की दीवार पर यह लेख उत्कीर्ण है। इसका निर्माण 1200 ई. में हुआ।
(xii) चित्तौड़ से प्राप्त फारसी शिलालेख – चित्तौड़ स्थित गैबी पीर की दरगाह से प्राप्त शिलालेख से जानकारी मिलती है कि अल्लाउद्दीन खिलजी ने अपने पुत्र खिज़्र खाँ के नाम पर चित्तौड़ दुर्ग का नाम खिज़्राबाद कर दिया।
(xiii) घटियाला के शिलालेख – ये लेख जोधपुर के पास घटियाला में एक स्तंभ पर उत्कीर्ण हैं। यह लेख संस्कृत एवं प्राकृत दोनों भाषाओं में उत्कीर्ण है। इसमें प्रतिहार शासक कक्कुक के बारे में वर्णन मिलता है।
(xiv) अशोक के शिलालेख – माैर्य शासक अशोक के दो शिलालेख बैराठ की पहाड़ी से मिले है जो भाब्रू शिलालेख एवं बैराठ शिलालेख है। भाब्रू शिलालेख बीजक की पहाड़ी पर कैप्टन बर्ट को प्राप्त हुआ था।