राजस्थान के इतिहास के प्रमुख स्त्रोत




प्रमुख ख्यात –  मुहणोत नैणसी री ख्यात।

जोधपुर राज्य री ख्यात।

बांकीदास री ख्यात।

मुण्डियार री ख्यात।

मुहणोत नैणसी, जोधपुर के शासक जसवंत सिंह के काल में थे। इनके द्वारा नैणसी री ख्यात व मारवाड़ रा परगना री विगत नामक पुस्तकों की रचना की गयी। ख्यात से मारवाड़ के अलावा गुजरात व मध्यप्रदेश के शासकों की भी जानकारी मिलती है। ख्यात में चौहान व भाटी शासकों के अलावा विभिन्न रियासतों की भौगोलिक जानकारी प्राप्त होती है। नैणसी री ख्यात 1643 ई. से 1666 ई. के मध्य लिखी गई।


मारवाड़ रा परगना री विगत 

इस पुस्तक से मारवाड़ के किलों की आबादी, वहाँ के जन-जीवन, सामाजिक, धार्मिक व अर्थव्यवस्था की जानकारी प्राप्त होती है।

मुंशी देवी प्रसाद ने मुहणौत नैणसी को राजस्थान का अबुल फजल कहा है।

मुहणौत नैणसी का वर्णन अबुल-फजल से अधिक वैज्ञानिक, स्पष्ट व निष्पक्ष माना जाता है।


बांकीदास आशिया

जोधपुर शासक मानसिंह के काल में बांकीदास को लाख पसाव के सम्मान से सम्मानित किया गया था। बांकीदास डिंगल, पिंगल, संस्कृत व फारसी भाषा के जानकार थे। इनके वर्णन से तत्कालीन भौगोलिक अवस्था, रीति-रिवाज व वाणिज्य व्यवस्था की जानकारी प्राप्त होती है।

बांकीदास के वर्णन में क्रमबद्धता का अभाव दिखाई पड़ता है।


दयालदास सिंढ़ायच

ये बीकानेर के महाराजा रतन सिंह के दरबारी विद्वान थे। इनकी प्रसिद्ध रचना बीकानेर री राठौड़ा री ख्यात मानी जाती है, जो कि “दयाल दास री ख्यात’ के नाम से भी जानी जाती है।

बीकानेर राज्य का क्रमबद्ध इतिहास इस पुस्तक से प्राप्त होता है।


रासौ 

जब किसी व्यक्ति या वंश की उपलब्धियों का वर्णन महाकाव्य के रूप में किया जाए, तब उसे ‘रासो’ कहा जाता है। रासो साहित्य से राजपूतकालीन राजनीतिक, सामाजिक व धार्मिक जानकारी प्राप्त होती है।

 

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