राठौड़ राजवंश




     महाराजा रायसिंह (1574-1612 ई.) :-

 

  • कल्याणमल का उत्तराधिकारी रायसिंह बना जिसे दानशीलता के कारण प्रसिद्ध इतिहासकारमुंशी देवीप्रसाद ने राजपूताने का कर्ण‘ कहा है।
  • अकबर ने इसेमहाराजा की पदवी प्रदान की।
  • बीकानेर का शासक बनते ही रायसिंह नेमहाराजाधिराज और महाराजा की उपाधियाँ धारण की। बीकानेर के राठौड़ नरेशों में रायसिंह पहला नरेश था जिसने इस प्रकार की उपाधियाँ धारण की थी।
  • मुगल बादशाह अकबर ने रायसिंह को सर्वप्रथम जोधपुर का अधिकारी नियुक्त किया था।
  • अकबर ने 1593 ई. में बुरहान-उल-मुल्क के विरुद्ध दानियाल के थट्‌टा अभियान में रायसिंह को भेजा।
  • अकबर ने रायसिंह को 1599 ई. में सलीम के साथ मेवाड़ अभियान पर भेजा।




  • 1583 ई. में रायसिंह और सिरोही के सुरताण देवड़ा के मध्य दत्ताणी नामक स्थान परदत्ताणी का युद्ध हुआ जिसमें महाराणा प्रताप का सौतेला भाई जगमाल शाही सेना की तरफ से लड़ता हुआ मारा गया।
  • अकबर ने रायसिंह की सेवाओं से खुश होकर उसे 1593 ई. में जूनागढ़ का प्रदेश और 1604 ई. में शमशाबाद तथा नूरपुर की जागीर तथा राय की उपाधि प्रदान की।
  • 1605 ई. में जहांगीर मुगल सम्राट बना तो उसने रायसिंह को 5000 मनसब जात या 5000 सवार कर दिया।
  • रायसिंह ने अपने मंत्री कर्मचन्द की देखरेख में राव बीका द्वारा बनवाये गये पुराने (जूना) किले पर ही नये किलेजूनागढ़ का निर्माण सन् 1594 में करवाया। किले के अन्दर रायसिंह ने एक प्रशस्ति भी लिखवाई जिसे अब रायसिंह प्रशस्ति‘ कहते हैं। किले के मुख्य प्रवेश द्वार सूरजपोल के बाहर जयमल-पत्ता की हाथी पर सवार पाषाण मूर्तियाँ रायसिंह ने ही स्थापित करवाई। इस दुर्ग में राजस्थान की सबसे पहली लिफ्ट स्थित है।
  • रायसिंह द्वारा सिरोही के देवड़ा सुरताण व जालौर के ताज खाँ को भी पराजित किया।
  • रायसिंह नेरायसिंह महोत्सववैधक वंशावलीबाल बोधिनी व ज्योतिष रत्नमाला’ टीका लिखी।
  • कर्मचन्द्रवंशोत्कीर्तनकाव्यम्’ में महाराजा रायसिंह कोराजेन्द्र कहा गया है तथा लिखा गया है कि वह हारे हुए शत्रुओं के साथ बड़े सम्मान का व्यवहार करता था।
  • इसके समय मंत्री कर्मचन्द ने उसके पुत्र दलपत सिंह को गद्दी पर बिठाने का षड्यंत्र किया तो रायसिंह ने ठाकुर मालदे को कर्मचन्द को मारने के लिए नियुक्त किया, परन्तु वह अकबर के पास चला गया।
  • रायसिंह के समय घोरत्रिकाल पड़ा उसने अपनी रियासत में व्यक्तियों के लिए जगह-जगह सदाव्रत खोले।




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