गुर्जर-प्रतिहार
- बादामी के चालुक्य नरेश‘पुलकेशिन द्वितीय’ के ‘एहोल अभिलेख’ में गुर्जर जाति का उल्लेख सर्वप्रथम हुआ है।
- उत्तर-पश्चिम भारत में गुर्जर-प्रतिहार वंश का शासनछठी से बाहरवीं सदी तक रहा है।
- प्रसिद्ध इतिहासकार‘रमेश चन्द्र मजूमदार’ के अनुसार गुर्जर-प्रतिहारों ने छठी सदी से बाहरवीं सदी तक अरब आक्रमणकारियों के लिए बाधक का काम किया।
- छठी शताब्दी के द्वितीय चरण में उत्तर-पश्चिम भारत में एक नए राजवंश की स्थापना हुई, जो‘गुर्जर–प्रतिहार वंश’ कहलाया।
- नीलकुंड, राधनपुर, देवली तथा करडाह शिलालेख में प्रतिहारों को गुर्जर कहा गया है।
- स्कन्दपुराण के पंच द्रविड़ों में गुर्जरों का उल्लेख मिलता है।
- अरब यात्रियों ने इन्हें‘जुर्ज’ कहा है। अलमसूद ने गुर्जर-प्रतिहार को ‘अल गुर्जर’ और राजा को ‘बोरा’ कहा है।
- मिहिरभोज के ग्वालियर अभिलेख में नागभट्ट को राम का प्रतिहार एवं विशुद्ध क्षत्रिय कहा है।
- स्मिथ, ब्यूलर, हर्नले आदि विद्वानों ने प्रतिहारों को हूणों की संतान बताया है।
कुछ विद्वानों के अनुसार गुर्जर-प्रतिहारों ने अपनी सत्ता का प्रारंभ भिल्लमल नगरी से किया था। - भिल्लमलकाचार्य ने अपने ग्रन्थ‘ब्रह्मस्फुटसिद्धान्त’ में भिल्लमल का उल्लेख किया गया है।
- एच.सी.रे. के अनुसार गुर्जर-प्रतिहारों की सत्ता का प्रारंभ केंद्रमाण्डवैपुरा (मण्डोर) था।
- मुहणोत नैणसी ने गुर्जर-प्रतिहारों की‘26 शाखाओं’ का वर्णन किया, जिनमें- मंडोर, जालौर, राजोगढ़, कन्नौज, उज्जैन और भड़ौंच के गुर्जर-प्रतिहार बड़े प्रसिद्ध रहे।
- मारवाड़ में छठी शताब्दी ईस्वी में‘हरिशचन्द्र’ (रोहिलद्धि) नामक ब्राह्मण ने मंडोर को अपनी राजधानी बनाकर गुर्जर-प्रतिहार वंश की स्थापना की।
- हरिशचन्द्र को गुर्जर-प्रतिहार का‘आदिपुरुष’ कहा गया है।
- रज्जिल ने मंडोर के आसपास के क्षेत्रों को जीतकर अपने राज्य का विस्तार किया।
- मंडोर के गुर्जर-प्रतिहारों की वंशावली‘रज्जिल’ से ही प्रारंभ होती है।
- गुर्जर-प्रतिहारों को भारत का‘द्वारपाल’ कहा जाता है।
गुर्जर-प्रतिहारों की राजधानियाँ –
- मंडोर (प्राचीनतम / प्रथम)
- मेड़ता
- भीनमाल
- उज्जैन (मध्यप्रदेश)
- कन्नौज (उत्तरप्रदेश)
नागभट्ट प्रथम (730-760 ई.) :-
- यह रज्जिल का पौत्र था।
- इसने राज्य-विस्तार किया और तीन नई राजधानियाँ क्रमश:‘मेड़ता’, ‘भीनमाल’ व ‘उज्जैन’ बनाई।
- इसे भीनमाल के गुर्जर-प्रतिहार वंश का वास्तविक संस्थापक माना जाता है।
- नागभट्ट प्रथम का दरबार“नागावलोक का दरबार” कहलाता था।
- जालौर, अवन्ति, कन्नौज प्रतिहारों की नामावली नागभट्ट से प्रारंभ होती है।
- नागभट्ट प्रथम के प्रमुख सामन्त गुहिल (बप्पा रावल – शक्तिशाली), चौहान, राठौड़, कलचूरि, चंदेल, चालुक्य, परमारथे।
- नागभट्ट प्रथम गुर्जर-प्रतिहारों का प्रथम शक्तिशाली शासक था, जिसने अरबों तथा ब्लुचों के आक्रमण को रोके रखा। इसलिए इसे प्रतिहारों में से प्रथम‘द्वारपाल’ माना जाता है।
- नागभट्ट को क्षत्रिय ब्राह्मण कहा गया है, इसलिए इस शाखा को‘रघुवंशी प्रतिहार’ भी कहते हैं।
- ग्वालियर प्रशस्ति में नागभट्ट प्रथम को‘मलेच्छों का नाशक’ तथा ‘नारायण’ कहा गया है।
- नागभट्ट प्रथम ने‘राम का द्वारपाल’, ‘मेघनाथ के युद्ध का अवरोधक’, ‘इन्द्र के गर्व का नाशक’ व ‘नारायण की मूर्ति का प्रतीक’ उपाधियाँ धारण की।
- इनके शासलकाल में चीनी यात्री‘ह्वेनसांग’ ने कु 72 देशों की यात्रा की थी। उसने भीनमाल को ‘पिलोमोलो/भीलामाला’ तथा गुर्जरों को ‘कु–चे–लो’ कहा।