ताँत्या टोपे
- तांत्या टोपे पेशवा बाजीराव के उत्तराधिकारी नाना साहब का स्वामिभक्त सेवक था। 1857 की क्रांति में वह ग्वालियर का विद्रोही नेता था।
- तांत्या टोपे 23 जून, 1857 ई. को अलीपुर में अंग्रेजों के हाथों परास्त होने के बाद राजस्थान के ब्रिटिश विरोधी लोगों से सहयोग प्राप्त करने की आकांक्षा से राजस्थान आया था लेकिन उन्हें वांछित सफलता नहीं मिली।
- तांत्या टोपे सर्वप्रथम 8 अगस्त, 1857 को भीलवाड़ा आये। वहाँ 9 अगस्त को उनका कुआड़ा नामक स्थान पर जनरल रॉबर्ट्स की सेना से युद्ध हुआ, परन्तु उन्हें पीछे हटना पड़ा।
- कुआड़ा से भागकर तांत्या टोपे सेना सहित कोठारिया के ठाकुर जोधसिंह के पास पहुँचे, जहाँ उन्हें रसद आदि उपलब्ध हुई।
- 13 अगस्त, 1858 को जनरल राबर्ट्स की सेना वहाँ आ गई और कोठारिया के निकट रूपनगढ़ में पुनः उसने तांत्या टोपे की सेना को परास्त किया। तांत्या टोपे अकोला की तरफ चले गये। वहाँ से वे झालावाड़ पहुँचे, वहाँ झालावाड़ की सेना उनसे मिल गई एवं शासक पृथ्वीसिंह को अपदस्थ कर झालावाड़ पर क्रांतिकारियों ने अधिकार कर लिया।
- तांत्या टोपे ने स्वयं को झालावाड़ का राजा घोषित किया था।
- तांत्या टोपे वहाँ से उदयपुर होते हुए पुनः ग्वालियर चला गया।
- तांत्या टोपे दिसम्बर, 1857 में पुनः मेवाड़ में आये तथा 11 दिसम्बर, 1857 को उसकी सेना ने बाँसवाड़ा को जीता। वहाँ से वे प्रतापगढ़ पहुँचे जहाँ मेजर रॉक की सेना ने उन्हें परास्त किया। इसके बाद वे जनवरी, 1858 में टोंक पहुँचे।
- तांत्या टोपे की सेना का अमीरगढ़ के किले के निकट टोंक के नवाब की सेना से युद्ध हुआ जिसमें क्रांतिकारियों की जीत हुई।
- टोंक में मेजर ईडन विशाल सेना के साथ आये, क्रांतिकारी फिर टोंक छोड़कर नाथद्वारा चले गए।
- तांत्या टोपे को नरवर के जागीरदार मानसिंह नरूका की सहायता से नरवर के जंगलों में पकड़ लिया गया और अन्ततः 18 अप्रेल, 1859 को उन्हें शिवपुरी में फाँसी दे दी गई।
अन्य तथ्य :
- बीकानेर के राजा सरदार सिंह एक मात्र ऐसे शासक थे जिन्होंने स्वंय सेनालेकर विद्रोहियों का दमन किया तथा राज्य के बाहर पंजाब गये।
- 1857 की क्रांति के भामाशाह बीकानेर के अमरचन्द बाठिया (ग्वालियर का व्यापारी) को रानीलक्ष्मी बाई, तांत्या टोपे तथा अन्य क्रान्तिकारियों को धन द्वारा सहयोग देने के कारण फाँसी की सजा दी गई।
- विद्रोह दमन में अंग्रेजों को सर्वाधिक महत्वपूर्ण सहायता उदयपुर के महाराणा स्वरूप सिंह से प्राप्त हुई।
- जयपुर के महाराजा रामसिंह ने विद्रोह के दौरान अंग्रेजों की तन, मन, धन से मदद की। जिसके फलस्वरूप अंग्रेजों ने उसे कोटकासिम परगना प्रदान किया।
- जयपुर में शहर के फौजदार सादुल्ला खां, नवाब विलायत अली खां, रावल शिवसिंह व मियाँ उस्मान विप्लव काल में दिल्ली गए व जयपुर में ब्रिटिश सत्ता के विरूद्ध षड़यंत्र करते रहे।