1857 की क्रांति




एरिनपुरा में विद्रोह

  • एरिनपुरा में क्रांति की शुरुआत 21 अगस्त, 1857 ई. को शीतल प्रसाद, तिलकराम व मोती खाँ के नेतृत्व में हुई।
  • एरिनपुरा में ए.जी.जी. लॉरेन्स के पुत्र एलेक्जेण्डर की हत्या कर दी गई। यहां से क्रांतिकारी ईडर( डूंगरपुर ) केशिवनाथ के नेतृत्व में चलो दिल्ली, मारो फिरंगी का नारा देते हुए दिल्ली के लिए रवाना हुए। रास्ते में रेवाड़ी पर क्रांतिकारियों ने अधिकार कर लिया, परंतु 16 नवम्बर, 1857 ई. को नारनोल में अंग्रेज अधिकारी गराड़ के नेतृत्व में अंग्रेजी सेना ने आक्रमण कर दिया। इस युद्ध में गराड़ मारा गया, लेकिन शिवनाथ के नेतृत्व में क्रांतिकारियों की हार हुई।



आउवा में विद्रोह

  • आउवा में क्रांति का नेतृत्वकुशालसिंह चम्पावत ने किया।
  • आउवा, पाली में है जो कि क्रांति के समय मारवाड़ का प्रमुख केन्द्र था। आउवा के ठाकुरों कीकुलदेवी सुगाली माता है। जिसके 10 सिर व 54 हाथ है।
  • एरिनपुरा के सैनिक दिली जाते समय बीच में खैरवा, पाली पहुंचे, जहाँ आउवा परगने के ठाकुर कुशालसिंह चंपावत ने क्रांतिकारियों का पूर्ण सहयोग किया और अपने आस-पास के परगनों को भी अपने साथ मिलाया जो निम्न है – आउवा, आसोप, आलनियावास, लांबिया, गूलर, रूढ़ावास इस प्रकार आउवा में 6000 सैनिक इकट्ठे हो गए।



  • ए.जी.जी. लॉरेन्सको जब आउवा में क्रांतिकारी सैनिकों के जमाव का पता चला तो उसने जोधपुर के महाराजा तख्तसिंह को क्रांतिकारियों को कुचलने के लिए लिखा। जोधपुर के महाराजा तख्तसिंह ने अपने किलेदार ओनाड़सिंह पंवार और फौजदार लोढा के नेतृत्व में 10000 सैनिक एवं घुड़सवार तथा 12 तोपें आउवा रवाना की। इस फौज के साथ लेफ्टिनेंट हीथकोट भी सम्मिलित था। 8 सितम्बर, 1857 ई. को ठाकुर कुशाल सिंह चम्पावत कैप्टन हीथकोट व तख्तसिंह के बीच बिथौड़ा का युद्ध (पाली) में हुआ बिथौड़ा युद्ध में कुशालसिंह चम्पावत विजयी हुआ।
  • बिथौड़ा युद्ध में पराजित होकर कैप्टन हीथकोट भाग गया व तख्तसिंह कासेनापति ओनाड़सिंह मारा गया। बिथौड़ा युद्ध के पश्चात् कुशालसिंह चम्पावत को कोठारिया ( भीलवाड़ा) के जोधसिंह ने शरण दी।
  • 18 सितम्बर, 1857 ई. को क्रांतिकारियों तथा जोधपुर के गर्वनर मेकमौसन के बीच चेलावास का युद्ध (पाली हुआ। चेलावास युद्ध में क्रांतिकारियों ने मेक मोसन का सिर काटकर आउवा किले के दरवाजे पर लटका दिया। चेलावास युद्धगोरों-कालों का युद्ध भी कहलाता है। आउवा को कर्नल होम्स ने नियंत्रण में लिया तथा यहां से होम्स सुगाली माता की मूर्ति 6 पीतल की तोपे व 7 लोहे की तोपों को लेकर अजमेर चला गया।



  • वर्तमान में सुगाली माता की मूर्ति पाली के बांगड़ संग्रहालय में सुरक्षित रखी हुई है।
  • ऊँट पालक (रेबारी) समुदाय के लोग मेकमौसन की कब्र पर पूजा अर्चना करते हैं।
  • इस हार का बदला लेने के लिए ए.जी.जी. लॉरेंस ने पालनपुर व नसीराबाद से सेना बुलाकर गवर्नर लार्ड कैनिंग व कर्नल हॉप्स के नेतृत्व में 20 जनवरी, 1858 ई. को सेना भेजी जिसने कुशालसिंह व एरिनपुरा के सैनिकों का 24 जनवरी, 1858 ई. को दमन किया। युद्ध में विजय की उम्मीद न रहने पर कुशालसिंह ने किले की सुरक्षा का भारलांबिया (पाली) के ठाकुर पृथ्वीसिंह को सौंपकर मेवाड़ में सलूम्बर की ओर चला गया।
  • आउवा से कुशालसिंह नेसलूम्बर (उदयपुर) के रावत केसरी तथा कोठारिया के रावत जोधसिंह के घर जाकर शरण ली।
  • सिरियाली के ठाकुर ने ठाकुर कुशाल सिंह चम्पावत का पीछा करती हुई अंग्रेजी सेना को 24 घंटे रोके रखा, इसलिए क्रांतिकारी भागने में सफल हो गए, लेकिन 124 क्रांतिकारी अंग्रेजी सेना की पकड़ में आ गए, जिनमें 24 को फाँसी दी गई।
  • 1857 की क्रांति के दो विजय स्तंभ पाली में स्थित है।
  • कुशाल सिंह चम्पावत ने अगस्त 1860 ई. में नीमच में समर्पण कर दिया।



  • आउवा में विद्रोह की जाँच के लिएटेलर आयोग का गठन किया गया।
  • टेलर आयोग ने इसकी जाँच की तथा नवम्बर, 1860 ई. में कुशालसिंह चम्पावत को रिहा कर दिया, लेकिन महाराजा जोधपुर ने उनकी जागीर का  एक बड़ा भाग जब्त कर लिया। मेलेसन का कथन-‘आउवा के ठाकुर कुशाल सिंह व उसके सहयोगियों का विरोध अपने स्वामी तख्तसिंह के विरोध में था न कि अंग्रेजी सरकार के।’ आउवा से प्राप्त जानकारी के आधार पर नाथूराम खड़गावत ने लिखा है कि ‘ठाकुर कुशालसिंह ने आउवा का नेतृत्व अपने भाई पृथ्वीसिंह को सुपुर्द कर मेवाड़ के सामन्तो से सेना एकत्र करने के लिए आउवा छोड़ा था।’
  • ठाकुर कुशालसिंह चंपावत की 1864 ई.को उदयपुर में मृत्यु हो गई।



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