तात्या टोपे तथा राजस्थान
- तात्या टोपे के बचपन का नाम‘रामचन्द्र पाण्डुरंग‘ था। तात्या टोपे का जन्म येवला, अहमदनगर (महाराष्ट्र) में हुआ। तात्या टोपे के पिता का नाम पाण्डुरंग भट्ट व माता का नाम रूक्मा देवी था।
- राजस्थान मेंतात्या टोपे दो बार माण्डलगढ, भीलवाड़ा व बांसवाड़ा में आया था।
- 9 अगस्त, 1857 ई. को भीलवाड़ा से एक मील दूर कोठारी नदी के किनारे ‘कुंवाड़ा’ नामक स्थान पर दोनों सेनाओं के मध्य युद्ध हुआ, जिसमें तात्या टोपे को पीछे हटना पड़ा और बूंदी गये , क्योंकि बूंदी का शासक रामसिंह तात्या टोपे की सहायता करना था, लेकिन हॉम्स की सेना पीछा कर रही थी अत: उसने सहयोग न कर बूंदी शहर के किवाड़ बंद कर दिए।
- राजस्थान में दूसरी बार तात्या टोपे11 दिसम्बर, 1857 ई. को आया और उसने बाँसवाड़ा के महारावल लक्ष्मण सिंह को पराजित कर बाँसवाड़ा राज्य पर अपना अधिकार किया लेकिन अंग्रेज अधिकारी लिन माउथ व मेजर रॉक के नेतृत्व वाली सेना ने तात्या को पराजित कर दिया।
- 21 जनवरी, 1859 ई. को तात्या सीकर पहुंचा जहाँ, मानसिंह नरूका के विश्वासघात के कारण नरवर के जंगलों से 7 अप्रैल, 1859 ई. गिरफ्तार किया गया।
- तात्या टोपे जैसलमेर के अलावा राजपूताना राज्य की प्रत्येक रियासत में घूमा।
- शंकरदान सामौरने तात्या टोपे के लिए निम्न पंक्तियां लिखी है-
‘जठै गियो जग जीतियो, खटके बिण रण खेत।
तगड़ो लडियो तांतियो, हिंदथान रे हेत।।’
- तात्या टोपे को18 अप्रैल, 1859 ई. में क्षिप्रानदी पर फांसी दी गई।
क्रांति के दौरान बीकानेर
- 1857 की क्रांति के दौरान बीकानेर का शासकसरदार सिंह था, उसने अपने पाँच हजार सेना के साथ राजस्थान की सीमा के बाहर निकलकर विद्रोह दमन में जनरल वॉन कॉर्टलैंड का सहयोग किया।
- अंग्रेजों ने सरदार सिंह को टिब्बी परगने के 41 गांव उपहार में दिए।
अजमेर में विद्रोह
- अजमेर के के केन्द्रीय कारागार में9 अगस्त, 1857 ई. को कैदियों ने विद्रोह कर दिया तथा 50 कैदी जेल से भाग गए।
- 1857 की क्रांति के समय ब्रिटिश सरकार के शस्त्रागार और गोला-बारूद का भंडार अजमेर में था। इसलिए किसी ने सही कहा था कि- ‘क्रांतिकारी दिल्ली के बजाय अजमेर को अपने नियत्रण में लेते तो, क्रांतिकारियों के हाथ कुछ लग सकता था।’ ए.जी.जी. लॉरेंस ने डीसा से यूरोपियन सेना को अजमेर बुलाया और जोधपुर के राजा तख्तसिंह ने कुशलराज सिंघवी के नेतृत्व में अजमेर के लिए सेना भेजी।