तराइन का द्वितीय युद्ध (1192 ई.) :-
- तराइन का द्वितीय युद्ध पृथ्वीराज तृतीय तथा मुहम्मद गौरी के मध्य 1192 ई. में हुआ जिसमें पृथ्वीराज तृतीय पराजित हुआ।
- इस युद्ध में पृथ्वीराज के साथ मेवाड़ शासक समरसिंह तथा दिल्ली के गोविन्दराज थे।
- हसन निजामी ने अपनी पुस्तक में गौरी द्वारा पृथ्वीराज के पास संधि हेतु दूत भिजवाने तथा अपनी अधीनता स्वीकार करने का प्रस्ताव भेजने का उल्लेख किया है।
- इस युद्ध के बाद अजमेर तथा दिल्ली पर गौरी का अधिकार हो गया।
- गौरी ने अजमेर का शासन कर के बदले पृथ्वीराज के पुत्र गोविन्दराज को सौंप दिया।
- तराइन का द्वितीय युद्ध भारतीय इतिहास में एक निर्णायक घटना है जिसके बाद भारत में स्थाई मुस्लिम साम्राज्य की स्थापना हुई।
- मुहम्मद गौरी भारत में मुस्लिम साम्राज्य का संस्थापक बना।
- तराइन के दोनों युद्धों का उल्लेख पृथ्वीराज रासो, तबकात-ए-नासिरी तथा ताजुल मासिर में मिलता है।
- पृथ्वीराज तृतीय को भारत का अन्तिम हिन्दू सम्राट तथा रायपिथोरा के नाम से जाना जाता है।
- पृथ्वीराज के दरबार में चन्द्रबरदाई, जनार्दन, जयानक, वागीश्वर, विद्यापति गौड़तथा पृथ्वीभट्ट जैसे विद्वानों को आश्रय प्राप्त था।
रणथम्भौर के चौहान
- 13 वीं शताब्दी में यहाँ पर चौहान वंश का शासन था।
- पृथ्वीराज तृतीय के पुत्र गोविन्द राज ने यहाँ पर तराइन के द्वितीय युद्ध के पश्चात चौहान वंश की स्थापना की।
- यहाँ के शासक वीरनारायण ने दिल्ली सुल्तान इल्तुतमिश के रणथम्भौर पर हुए आक्रमण को विफल कर दिया लेकिन इल्तुतमिश ने दिल्ली में इसका वध करवा दिया।
- वागभट्ट ने पुन: रणथम्भौर दुर्ग पर अधिकार कर पुन: यहाँ चौहान वंश का शासन स्थापित किया।