- मेवाती (कोठी) –
- अलवर, भरतपुर, धौलपुर, करौली।
- शांत स्वभाव का बैल, गर्दन झालरदार (लटकी) हुई होती है।
- इस गौवंश का क्षेत्र रथ क्षेत्र के नाम से जाना जाता है।
- कांकरेज – उत्पति स्थल-: कच्छ का रन (गुजराज)
- मुख्यतः जालौर के नेहड़ क्षेत्र में, पाली, सिरोही आदि में।
- द्विकाजी प्रकार की नस्ल। भारवहन व दूग्ध उत्पादन के लिएप्रसिद्ध
- अजमेरा, गिर, रेंडा (द. प. राजस्थान)
- मूल उत्पत्ति स्थल – गिर-गुजरात, पाली, अजमेर,किशनगढ़, भीलवाड़ा, राजसमंद । यह चकत्तेदार होती है। गायें-अच्छी। अधिक दूध के लिए प्रसिद्ध।
- छोटी/बड़ी मालवी (द. पू. मध्यवर्ती)
- झालावाड़ का आस-पास – छोटी मालवी, शेष क्षेत्र में बड़ी मालवी।
- गायों की छोटी टांगें होती है। बैल भार वहन में अच्छे होते हैं।
- सांचौरी –
- जालौर की सांचौर तहसील में मिलती है।
- विदेशी नस्ले :जर्सी – अमेरिका (कम उम्र में दूध), हॉलस्टीन- हॉलैण्ड/नीदरलैण्ड (सर्वाधिक दूध), रेड डेन – डेनमार्क (दूध में दूसरे स्थान पर)।
- मालवी –:झालावाड़, डूगरपुर, बांसवाड़ा, कोटा, व उदयपुर।
- भेड़
- 10 नस्ले उपलब्ध हैं- नाली, मगरा, पूगल, चोखला, जैसलमेरी, मारवाड़ी, सोनाड़ी, देशी या खेरी, मालपुरी तथा बागड़ी भारवाठी ‘नाल’ । सर्वाधिक – बाड़मेर, जैसलमेर। न्यूनतम- बांसवाड़ा।