राजस्थान में प्रजामंडल आंदोलन




अलवर

  • अलवर में स्वाधीनता संग्राम के अग्रदूत पं. हरिनारायण शर्मा थे, जिन्होंने अस्पृश्यता निवारण संघ, वाल्मीकि संघ व आदिवासी संघ की स्थापना की।
  • वर्ष 1938 में पण्डित हरिनारायण शर्मा व कुंजबिहारी लाल मोदी ने अलवर में प्रजामण्डल की स्थापना की। इस संस्था का पंजीकरण नहीं हुआ तो संघर्ष आरंभ हुआ।
  • अप्रैल, 1940 में अलवर में निर्वाचित नगर पालिका परिषद् का गठन हुआ।
  • वर्ष 1940 में युद्ध कोष के लिए चंदा वसूली का कार्यकर्ताओं ने विरोध किया। इस पर हरिनारायण शर्मा व भोलानाथ मास्टर को गिरफ्तार कर लिया गया और उन पर मुकदमा चलाया गया।
  • जनवरी, 1944 में भवानीशंकर शर्मा की अध्यक्षता में प्रजामण्डल का प्रथम अधिवेशन हुआ। उत्तरदायी सरकार के गठन की मांग को लेकर प्रजामण्डल निरन्तर प्रयासरत रहा। वर्ष 1946 में प्रजामण्डल ने किसानों की मांगों का समर्थन करके उन्हें भू-स्वामित्व देने के प्रस्ताव का समर्थन किया।


  • 30 अक्टूबर, 1946 में महाराजा ने संवैधानिक सुधारों के लिए समिति नियुक्त की जिसका आन्दोलनकारियों ने बहिष्कार किया।
  • उत्तरदायी शासन की मांग अलवर के शासक ने दिसम्बर, 1947 को स्वीकार कर ली।
  • मार्च, 1948 में मत्स्य संघ में अलवर के विलय के साथ ही राजस्थान के एकीकरण की प्रक्रिया प्रारम्भ हो गई।


भरतपुर

  • भरतपुर में स्वतंत्रता आन्दोलन का श्रीगणेश जगन्नाथ दास अधिकारी व गंगा प्रसाद शास्त्री ने किया। वर्ष 1912 में हिन्दी साहित्य समिति की स्थापना हुई। सौभाग्य से भरतपुर के महाराजा किशनसिंह अधिक प्रगतिशील शासक थे। इन्होंने हिन्दी को प्रोत्साहित किया व उत्तरदायी शासन की मांग को स्वीकार किया व 15 सितम्बर, 1927 को ऐसी घोषणा भी की।
  • भरतपुर में वर्ष 1927 में गौरीशंकर हीराचन्द ओझा की अध्यक्षता में हिन्दी साहित्य का 17वाँ अधिवेशन आयोजित हुआ।
  • ब्रिटिश सरकार ने महाराजा की इन गतिविधियों को गम्भीरता से लेते हुए उन्हें गद्दी छोड़ने पर विवश किया। उनके स्थान पर अल्प वयस्क बृजेन्द्र सिंह गद्दी पर बैठे।
  • प्रशासन के लिए एक अंग्रेज अधिकारी की नियुक्ति की गई, जिसमें जगन्नाथ दास अधिकारी को निर्वासित कर दिया व सार्वजनिक सभाओं व प्रकाशनों पर प्रतिबंध लगा दिया।
  • वर्ष 1928 में भरतपुर राज्य प्रजा संघ की स्थापना।


  • वर्ष1938 में गोपीलाल यादव की अध्यक्षता में प्रजामण्डल की स्थापना हुई।
  • हरिपुरा अधिवेशन के पश्चात् भरतपुर के नेताओं ने रेवाड़ी (हरियाणा) में दिसम्बर, 1938 को प्रजामंडल का गठन किया।
  • दिसम्बर, 1940 में प्रजामंडल से समझौता किया, जिसके तहत प्रजा परिषद् नाम से संस्था का पंजीकरण किया गया व सभी नेता रिहा किए गए।
  • प्रजा परिषद् का मुख्य उद्देश्य सार्वजनिक समस्याओं को प्रस्तुत करना, प्रशासनिक सुधारों पर बल देना व शिक्षा का प्रसार करना था।
  • परिषद् ने  27 अगस्त से 2 सितम्बर, 1940 तक राष्ट्रीय सप्ताह मनाया।
  • परिषद् ने भारत छोड़ो आन्दोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया। सरकार ने परिषद् की संतुष्टि के लिए बृज जय प्रतिनिधि सभा का गठन किया किन्तु राजनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति नहीं हो सकी। प्रतिनिधि सभा का बहिष्कार किया गया।
  • वर्ष 1945 में सत्याग्रह की घोषणा की गई किन्तु प्रमुख नेताओं की गिरफ्तारी के कारण वह सफल नहीं हो पाया। दिसम्बर, 1946 के कामां सम्मेलनों में बेगार समाप्त करने व उत्तरदायी शासन की मांग रखी गई। दुर्भाग्यवश राज्य के उपद्रव साम्प्रदायिक झगड़ों में बदल गए।
  • वर्ष 1947 में प्रजा परिषद् ने किसान सभा के साथ मिल राष्ट्रव्यापी आंदोलन छेड़ा।
  • 18 मार्च, 1948 को भरतपुर के मत्स्य संघ में विलीन होने के बाद ही समस्याएँ समाप्त हो पाई।


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