कच्छवाहा राजवंश

 




 

अलवर का कच्छवाहा वंश

  • अलवर प्राचीन मत्स्य प्रदेश का हिस्सा था जिसकी राजधानी विराट नगर थी।
  • 11 वीं शताब्दी में यह क्षेत्र चौहानों के अधीन था लेकिन पृथ्वीराज तृतीय की तराईन के द्वितीय युद्ध में पराजय के बाद यह क्षेत्र स्वतंत्र हो गया।
  • आमेर के कच्छवाहा शासक उदयकरण के पुत्र वीरसिंह ने मौजमाबाद की जागीर ली तथा इसी का पौत्र नरू हुआ जिसके वशंज नरूका कच्छवाहा कहलाये।
  • कल्याण सिंह नरूका आमेर शासक मिर्जाराजा जयसिंह के समय मौजमाबाद की जागीर का मालिक था तथा इन्होंने कल्याण सिंह को माचेड़ी की जागीर प्रदान की।




     

प्रताप सिंह नरूका (1775-1790 ई.)

  • प्रतापसिंह मोहब्बत सिंह का पुत्र था जिसने 1775 ई. में अलवर राज्य की स्थापना की।
  • प्रतापसिंह जयपुर के शासक सवाई माधोसिंह प्रथम की सेवा में था।
  • भरतपुर के जवाहर सिंह की सेना का जयपुर की सेना से मावंडा नामक स्थान पर युद्ध हुआ जिसमें प्रतापसिंह ने जयपुर की सेना का साथ दिया ।
  • इससे प्रसन्न होकर माधोसिंह ने प्रतापसिंह को ‘रावराजा’ की उपाधि प्रदान की।
  • 1770 ई. में प्रतापसिंह ने राजगढ़ दुर्ग तथा टहला दुर्ग का निर्माण करवाया।
  • 1772 ई. में मालाखेड़ा दुर्ग, 1773 में बलदेवगढ़ दुर्ग का निर्माण करवाया।
  • 1774 ई. में मुगल सेनापति नजफ खाँ ने प्रतापसिंह की सहायता से आगरा के किले को भरतपुर के अधिकार से मुक्त करवाया।
  • 1774 ई. में माचेड़ी की जागीर हमेशा के लिए जयपुर राज्य से स्वतंत्र हो गई।
  • 1782 ई. में जयपुर शासक महाराजा सवाई प्रताप सिंह ने राजगढ़ पर आक्रमण कर प्रतापसिंह के कुछ क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया।
  • अलवर के प्रतापसिंह ने महादजी सिंधिया की सहायता से जयपुर पर आक्रमण किया तब जयपुर के सवाई प्रतापसिंह तथा अवलर के प्रतापसिंह के मध्य समझौता हो गया।




     

बख्तावर सिंह (1790-1815 ई.) :- 

  • प्रतापसिंह के बाद उनके पुत्र बख्तावर सिंह अलवर के शासक बने।
  • इन्हाेंने 1803 ई. के लासवाड़ी के युद्ध में मराठों के विरूद्ध अंग्रेजों की सहायता की तथा अंग्रेजों ने इन्हें ‘राठ’ नामक क्षेत्र दिया।
  • 1803 ई. मेंबख्तावर सिंह ने अंग्रेजों के साथ सहयोग संधि की थी।




     

महाराजा विनय सिंह (1815-57 ई.)

  • बख्तावर सिंह ने देहांत के बाद कुछ सरदार उनके भतीजे विनयसिंह (बन्नेसिंह) को तथा कुछ सरदार उनकी पासवान से उत्पन्न पुत्र बलवंत सिंह को शासक बनाना चाहते थे।
  • अत: 1815 ई. में दोनाेंविनयसिंह तथा बलवंत सिंह एक साथ सिंहासन पर बैठे तथा कम्पनी सरकार द्वारा दाेनों को बराबर का शासक होने की मान्यता दे दी गई।
  • बाद में विनयसिंह के दबाव के कारण बलवंत सिंह को शासक पद से हटा दिया गया तथा उन्हेंनीमराणा तथा तिजारा की जागीर दे दी गई।
  • इस प्रकार नीमराणा अलवर से अलग एक रियासत बनी। 1845 ई. में बलवंत सिंह की नि:संतान मृत्यु होने से नीमराणा को पुन: अलवर में मिला दिया गया।
  • विनयसिंह ने मेव जाति से सुरक्षा के लिए रघुनाथगढ़ दुर्ग बनवाया।
  • 1857 की क्रांति के समय अलवर के शासक विनयसिंह थे।




     

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