बिजौलिया किसान आंदोलन- (1897-1941 ई.)
– बिजौलिया को प्राचीन काल में ‘विजयावल्ली‘/विन्धपवल्ली के नाम से जाना जाता था।
– बिजौलिया व भैंसरोड़गढ़ के मध्य भाग को ऊपरमाल के नाम से जाना जाता है। बिजौलिया शिलालेख में ऊपरमाल के क्षेत्र को ‘उत्तमाद्रि‘ कहा गया है।
– बिजौलिया ठिकाने की स्थापना अशोक परमार द्वारा की गई। बिजौलिया मेवाड़ का प्रथम श्रेणी का ठिकाना था।
– अशोक परमार की खानवा युद्ध में वीरता से प्रसन्न होकर सांगा ने अशोक परमार को बिजौलिया ऊपरमाल की जागीर भेंट की।
– बिजौलिया भीलवाड़ा में 83 गाँवों का समूह था, जिसमें 84 प्रकार के कर लिए जाते थे।
प्रथम चरण:-
– 1894 ई. में राव गोविन्ददास की मृत्यु के बाद राव किशनसिंह (कृष्ण सिंह) नया जागीरदार बना।
– इसके समय किसानों से 84 लाग ली जाती थी उपज का आधा भाग लगान के रूप में एवं बिजौलिया की जनता से बेगार भी ली जाती थी।
– गिरधारीपुर गाँव में 1897 ई. में गंगाराम धाकड़ के पिता के मृत्यभोज के अवसर पर किसानों ने सभा कर अपनी समस्या महाराज को अवगत कराने के लिए ‘नानजी पटेल‘ व ‘ठाकरी पटेल‘ को चुना व महाराज के पास भेजा।
– इन शिकायतों की जाँच के लिए महाराणा ने ‘हामिद हुसैन‘ नामक अधिकारी को भेजा।
– हामिद हुसैन ने किसानों की शिकायतों को सही बताया मगर महाराणा ने इस पर कोई कार्यवाही नहीं की।
– कृष्ण सिंह ने वर्ष 1903 में ‘5 रू का चंवरी कर‘ नाम से नई लाग लगा दी, विरोधस्वरूप किसानों ने हल नहीं चलाए, जिससे जागीरदार को झुकना पड़ा और लगान भी 1/2 से घटाकर 2/5 कर दिया।
– वर्ष 1906 में नए जागीरदार पृथ्वीसिंह ने ‘तलवार बंधाई‘ नाम से नई लाग लगा दी।
– किसानों ने साधु सीताराम दास, फतेहकरण चारण और ब्रह्मदेव के नेतृत्व में जागीरदार के इस कदम का विरोध किया।
– वर्ष 1914 में पृथ्वीसिंह पुत्र केसरी सिंह के वंशज की मृत्यु पर मेवाड़ राज्य की ओर से अमरसिंह राणावत को प्रशासक नियुक्त किया गया। भूमककर घटाकर ½ से 1/3 किया।
– साधु सीताराम दास (1916-57 ई.) के आग्रह पर 1915 ई. में विजयसिंह पथिक बिजौलिया किसान आंदोलन से जुड़े एवं आंदोलन में नवचेतना भर दी।
– वर्ष 1917 में विजयसिंह पथिक ने हरियाली अमावस्या के दिन ‘ऊपरमाल पंच बोर्ड‘ की स्थापना बैरीसाल गाँव भीलवाड़ा में की।
– पथिक जी ने ‘ऊपरमाल का डंका‘ नामक अखबार प्रकाशित किया।
– गणेश शंकर विद्यार्थी ने अपने समाचार पत्र ‘प्रताप‘ से इस आंदोलन को देशव्यापी बना दिया।
– पथिक जी की प्रेरणा से माणिक्यलाल वर्मा ने ठिकाने की नौकरी छोड़ दी एवं इन्होंने ‘पंछीड़ा’ गीत लिखा।
– मुंशी प्रेमचंद जी ने इस आंदोलन की पृष्ठभूमि पर ‘रंगभूमि‘ नामक नाटक लिखा।
– इस आंदोलन को शांत करने के लिए मेवाड़ सरकार ने बिन्दुलाल भट्टाचार्य, अमरसिंह व अफजल अली को एक तीन सदस्यीय आयोग किसानों की समस्याओं को सुनने के लिए भेजा।
– इस आयोग ने अनियमित लागतें हटाने व बेगार न लेने की सिफारिश की लेकिन मेवाड़ सरकार ने आयोग की सिफारिशों पर ध्यान नहीं दिया।
– पथिक जी ने 1919ई. में वर्धा से ‘राजस्थान केसरी‘ और 1925ई. में अजमेर से प्रकाशित ‘नवीन राजस्थान‘ समाचार पत्रों के माध्यम से बिजौलिया ठिकाने के अत्याचारों को उजागर किया।
– अंग्रेज सरकार ने A.G.G. हॉलैण्ड के नेतृत्व में एक समिति किसानों से वार्ता के लिए भेजी। किसान पंचायत की ओर से सरपंच मोतीलाल, नारायण पटेल, रामनारायण चौधरी व माणिक्यलाल वर्मा ने सरकारी समिति से वार्ता की।
– किसानों व सरकार के मध्य 11 फरवरी, 1922 को समझौता हो गया।
जिसमें 35 लागतें समाप्त करने, तलवार बंधाई की राशि कम करने, बेगार न लेने व किसानों पर से मुकदमें हटा लेने की शर्ते थी।
– लेकिन ठिकाने ने इस समझौते की पालना नहीं की।
– वर्ष 1927 में विजयसिंह पथिक बिजौलिया आंदोलन से अलग हो गए।
– पथिक जी के पश्चात् नेतृत्व ‘माणिक्यलाल वर्मा‘ ने किया जिसमें जमनालाल बजाज एवं हरिभाऊ उपाध्याय ने सहायता की।
– वर्ष 1941 में मेवाड़ का प्रधानमंत्री सर T. विजय राघवाचार्य ने राजस्व विभाग के मंत्री डा. मोहनसिंह मेहता को समस्या का अंतिम रूप से समाधान करने बिजौलिया भेजा।
– वर्ष 1941 में माणिक्यालाल वर्मा ने इस आंदोलन की मांगे मनवाकर बिजौलिया आंदोलन को समाप्त किया गया।
– बिजौलिया आंदोलन 1897 ई. से 1941 ई. तक 44 वर्षों तक चलने वाला भारत का सबसे पहला, सबसे बड़ा व पूर्णत: अहिंसक आंदोलन था।