बेंगू किसान आंदोलन (वर्तमान चित्तौड़)
– बेंगू आंदोलन बेगार प्रथा से सर्वाधिक प्रभावित था। यहाँ पर 25 प्रकार की लागत ली जाती थी।
– विजयसिंह पथिक, रामनारायण चौधरी व माणिक्यलाल वर्मा ने बेंगू के किसानों को संगठित किया।
शुरुआत:- 1921 में मेनाल के ‘भैरुकुण्ड‘ नामक स्थान पर एकत्र किसानों ने सामंती अत्याचारों के विरुद्ध आंदोलन का निर्णय लिया।
– बेंगू किसान आंदोलन का नेतृत्व विजयसिंह पथिक के आग्रह पर रामनारायण चौधरी ने किया तथा इनकी पत्नी अंजना चौधरी ने महिलाओं का नेतृत्व किया।
– बेंगू राव अनूपसिंह ने आंदोलन को दमन करने का प्रयास किया मगर अंत में विवश होकर राव अनुपसिंह ने किसानों से समझौता किया।
– यह मेवाड़ राज्य में किसानों से प्रथम समझौता था।
– मेवाड़ सरकार ने इस समझौते को अस्वीकार कर इसे ‘बोल्शेविक समझौते ‘ की संज्ञा देते हुए रावत अनुपसिंह को उदयपुर में नजरबंद करवा दिया।
– ठिकाने पर मुंसरमात बैठा दी एंव लाला अमृतलाल को बेंगू का मुंसरिम नियुक्त कर दिया एवं सेटलमेंट कमिश्नर ट्रेंच को किसानों की शिकायतों की जांच के लिए नियुक्त किया जिसने बेगार, लगान व लागतों को उचित ठहराया।
– ट्रेंच के निर्णयों का विरोध करने के लिए किसान गोविन्दपुरा गाँव में एकत्रित हुए।
– 13 जुलाई,1923 को ट्रेंच के आदेश पर किसानों पर गोलियां चला दी जिसमें रूपाजी व कृपाजी धाकड़ शहीद हो गए एवं 1500 किसानों को गिरफ्तार किया गया।
– आंदोलन के दबाव से बेगू में नया बंदोबस्त किया गया, 34 लागते समाप्त कर दी गई बेगार बंद कर दी गई जिससे आंदोलन समाप्त हो गया।