महाराजा सूरजसिंह
- 16 अप्रेल, 1805 को मंगलवार के दिन भाटियों को हराकर इन्होंने भटनेर को बीकानेर राज्य में मिला लिया तथा भटनेर का नाम हनुमानगढ़ रख दिया (क्योंकि इन्होंने हनुमानजी के वार मंगलवार को यह जीत हासिल की थी)।
अन्य तथ्य
- 1818 ई. में बीकानेर के राजा सूरजसिंह ने ईस्ट इंडिया कम्पनी से सुरक्षा संधि कर ली और बीकानेर में शांति व्यवस्था कायम करने में लग गये।
- 1834 ई. में जैसलमेर व बीकानेर की सेनाओं की बीच बासणी की लड़ाई हुई।
- राजस्थान के दो राज्यों के बीच हुई यह अंतिम लड़ाई थी।
- 1848 ई. में बीकानेर नरेश रतनसिंह ने मुल्तान के दीवान मूलराज के बागी होने पर उसके दमन में अंग्रेजों की सहायता की।
- 1857 ई. की क्रान्ति के समय बीकानेर के महाराजा सरदार सिंह थे जो अंग्रेजों के पक्ष में क्रान्तिकारियों का दमन करने के लिए राजस्थान के बाहर पंजाब तक गये।
- बीकानेर के लालसिंह ऐसे व्यक्ति हुए जो स्वयं कभी राजा नहीं बने परन्तु जिसके दो पुत्र-डूंगरसिंह व गंगासिंह राजा बने।
- बीकानेर के राजा डूंगरसिंह के समय 1886 को राजस्थान में सर्वप्रथम बीकानेर रियासत में बिजली का शुभारम्भ हुआ।
- 1927 ई. में बीकानेर के महाराज गंगासिंह (आधुनिक भारत का भगीरथ) राजस्थान में गंगनहर लेकर आये जिसका उद्घाटन वायसराय लॉर्ड इरविन ने किया।
- गंगासिंह अपनी विख्यात गंगा रिसाला सेना के साथ द्वितीय विश्व युद्ध में अंग्रेजों के पक्ष में युद्ध लड़ने के लिये ब्रिटेन गये।
- बीकानेर रियासत के अंतिम राजा सार्दूलसिंह थे।
किशनगढ़ के राठौड़
- राजस्थान में राठौड़ वंश का तीसरा राज्य किशनगढ़ था, जिसकी स्थापना सन् 1609 मेंजोधपुर के शासक मोटा राजा उदयसिंह के पुत्र श्री किशन सिंह ने की थी। सम्राट जहाँगीर ने यहाँ के शासक ‘महाराजा’ का खिताब दिया। यहाँ महाराजा सांवत सिंह प्रसिद्ध राजा हुए, जो कृष्ण भक्ति में राजपाठ छोड़कर वृंदावन चले गए एवं ‘नागरीदास’ के नाम से प्रसिद्ध हुए।
कच्छवाह वंश
- ‘कच्छवाह‘ अपने आपको भगवान श्री राम के पुत्र ‘कुश‘ की संतान मानते हैं।
- संस्थापक – दुलहराय (तेजकरण), मूलतः ग्वालियर निवासी था।
- 1137 ई. में उसने बड़गुजरों को हराकर नवीन ढूँढाड़ राज्य की स्थापना की।
- दुलहराय के वंशज कोकिलदेव ने 1207 ई. में मीणाओं से आमेर जीतकर अपनी राजधानी बनाया, जो 1727 ई. तक कच्छवाह वंश की राजधानी रहा।
- इसी वंश के शेखा ने शेखावटी मे अपना अलग राज्य बनाया।
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