भारमल (1547-1574 ई.) या बिहारीमल
- 1547 ई. में भारमल आमेर का शासक बना।
- भारमल प्रथम राजस्थानी शासक था, जिसने अकबर की अधीनता स्वीकार की व 1562 ई. में अपनी पुत्री हरखाबाई उर्फ मानमति या शाही बाई (मरियम उज्जमानी) का विवाह अकबर से किया।
- मुगल बादशाह जहाँगीर हरखाबाई का ही पुत्र था।
भगवन्त दास (1574-1589 ई.)
- भगवन्त दास या भगवान दास भारमल का पुत्र था।
- उसने अपनी पुत्री मानबाई (मनभावनी) का विवाह शहजादे सलीम (जहाँगीर) से किया। मानबाई को ‘सुल्तान निस्सा‘ की उपाधि प्राप्त थी।
- खुसरो इसी का पुत्र था।
मानसिंह (1589-1614 ई.)
- मानसिंह भगवन्त दास का पुत्र था।
- मानसिंह आमेर के कच्छवाह शासकों में सर्वाधिक प्रतापी एवं महान् राजा था।
- मानसिंह ने 52 वर्ष तक मुगलों की सेवा की।
- मानसिंह 1573 में अकबर के दूत के रूप में राणा प्रताप से मिला था।
- 1576 ई. में हल्दीघाटी युद्ध में उसने शाही सेना का नेतृत्व किया था।
- अकबर ने उसे फर्जन्द (पुत्र) एवं राजा की उपाधि प्रदान की। वह अकबर के नवरत्नों में शामिल था।
- मानसिंह ने बंगाल में ‘अकबर नगर‘ तथा बिहार में ‘मानपुर नगर‘ को बसाया।
- मानसिंह स्वयं कवि, विद्वान, साहित्य प्रेमी व विद्वानों का आश्रयदाता था।
- शिलादेवी (आमेर), जगत शिरोमणी (आमेर) गोविन्द देवजी (वृंदावन) मंदिर उसी ने बनवाये थे।
जयसिंह प्रथम या मिर्जा राजा जयसिंह (1621-1667 ई.)
- इसने तीन मुगल बादशाहों जहाँगीर, शाहजहां व औरंगजेब को अपनी सेवाएँ दी।
- उसने औरंगजेब की तरफ से शिवाजी को सन्धि के लिए बाध्य किया। यह सन्धि इतिहास में पुरन्दर की सन्धि (जून 1665 ई.) के नाम से प्रसिद्ध है।
- उसकी योग्यता एवं सेवाओं से प्रसन्न होकर शाहजहाँ ने उसे ‘मिर्जा राजा‘ की उपाधि प्रदान की।
- बिहारी सतसई के रचयिता कवि बिहारी उसके दरबारी कवि थे।
- बिहारी का भांजा कुलपति मिश्र भी बड़ा विद्वान था, जिसने 52 ग्रन्थों की रचना की इनका दरबारी था।
- इनकी मृत्यु बुरहानपुर के पास हुई थी।
जयसिंह द्वितीय या सवाई जयसिंह (1700-1743 ई.)
- इनका वास्तविक नाम विजयसिंह था।
- बादशाह औरंगजेब ने उसकी वाकपटुता से प्रभावित होकर उसकी तुलना जयसिंह प्रथम से की तथा उसे जयसिंह प्रथम से भी अधिक योग्य अर्थात् सवाया जानकर विजयसिह का नाम बदलकर सवाई जयसिंह कर दिया।
- सवाई जयसिंह ने मुगलों के लिए तीन बार मराठों से युद्ध किये।
- सवाई जयसिंह द्वारा जाटों पर मुगलों की विजय होने के उपलक्ष्य में बादशाह मुहम्मद शाह ने जयसिंह को राज राजेश्वर, राजाधिराज, सवाई की उपाधि प्रदान की।
- सवाई जयसिंह ने मेवाड़ के महाराणा जगतसिंह द्वितीय से मिलकर 1734 ई. में हुरड़ा (भीलवाड़ा) मे राजस्थान के राजपूत राजाओं का सम्मेलन आयोजित किया जिसका उद्देश्य सामुहिक शक्ति द्वारा मराठा आक्रमण को रोकना था।
- वह संस्कृत, फारसी, गणित एवं ज्योतिष का प्रकाण्ड विद्वान था उसे ‘ज्योतिष शासक’ भी कहा गया है।
- उसने ‘जयसिंह कारिका’ नामक ज्योतिष ग्रन्थ की रचना की।
- उसने जयपुर, दिल्ली, बनारस, उज्जैन व मथुरा में वैध शालाए बनवायी जिसमें सबसे बड़ी वेधशाला (जंतर-मंतर) जयपुर की है तथा सर्वप्रथम वेधशाला दिल्ली की है।
- उसने 18 नवम्बर, 1727 ई. में जयपुर नगर की स्थापना की। जयपुर का प्रधान वास्तुकार बंगाली ब्राह्मण विद्याद्यर भट्टाचार्य था।
- नाहरगढ़ दुर्ग, जयनिवास महल का निर्माण भी करवाया।
- सवाई जयसिंह के समय ही आमेर राज्य का सर्वाधिक विस्तार हुआ।
- वह अंतिम हिन्दू शासक था जिसने अश्वमेघ यज्ञ का आयोजन करवाया। इस यज्ञ का पुरोहित पुण्डरीक रत्नाकर था।
- मुगल बादशाह बहादुर शाह ने सवाई जयसिंह को आमेर की गद्दी से अपदस्थ करके विजय सिंह को आमेर का शासक बनाया तथा आमेर का नाम ‘मोमिनाबाद‘ रखा था।
- पुण्डरीक रत्नाकर ने ‘जयसिंह कल्पदुम‘ नामक पुस्तक लिखी।
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