मेवाड़ का इतिहास के Part – 1
मेवाड़ राज्य का इतिहास
मेवाड का प्राचीन नाम
– महाभारत काल में मेवाड़ शिवी जनपद के अन्तर्गत आता था। शिवी की राजधानी मध्यमिका (वर्तमान चित्तौड़गढ़) थी।
– मेदपाट – मेव जाति की अधिकता के कारण मेवाड़ को मेदपाट कहा गया।
– उदसर – भीलों का मुख्य क्षेत्र होने के कारण मेवाड़ का प्राचीन नाम उदसर था।
प्रागवाट – शक्तिशाली/सम्पन्न शासकों का राज्यक्षेत्र
मेरुनाल – पहाड़ी क्षेत्र होने के कारण मेवाड़ को प्राचीन काल में मेरुनाल कहा गया।
मेवाड़ का राज्य वाक्य- “जो दृढ़ राखै धर्म तिही राखे करतार”
- मेवाड़ का ध्वज
- मेवाड़ के ध्वज में सबसे ऊपर सू्र्य की आकृति अंकित है।
- एक तरफ व्यक्ति के हाथ में भाला(भील व्यक्ति) है तथा दूसरी तरफ व्यक्ति (सिसोदिया व्यक्ति) के हाथ में तलवार है।
- ध्वज के नीचे अत: अत: वाक्य अंकित है।
- भाला लिए व्यक्ति भील जाति का है। इतिहासकारों के अनुसार व्यक्ति पूँजा भील है। मेवाड़ के शासकों का राज्याभिषेक भीलों द्वारा किया जाता था।
- मेवाड़ का वर्तमान राजकीय ध्वज महाराणा प्रताप के काल में निर्मित है।
- मेवाड़ राजाओं के प्रमुख शस्त्र- तलवार व भाला।
- मेवाड़ में गुहिल वंश ने शासन किया।
- गुहिल वंश- विश्व का सबसे प्राचीन जीवित राजवंश।
- मेवाड़ में गुहिल वंश की स्थापना 566 ई. में गुहिल/ गुहादित्य/गुहिलोत के द्वारा की गई।
- कालांतर में मेवाड़ में गुहिल वंश दो भागों में बाँटा-
रावल शाखा
- सिसोदा शाखा(सिसोदिया)
- गुहिल वंश के कुलदेवता- एकलिंग नाथ जी
- एकलिंग नाथ जी का मंदिर कैलाशपुरी(उदयपुर) में स्थित है।
- एकलिंगनाथ जी के मंदिर का निर्माण बप्पा रावल द्वारा कराया गया।
- एकलिंगनाथ जी मंदिर को पाशुपात सम्प्रदाय की पीठ भी माना जाता है।
- गुहिल वंश के आराध्य देव- गढ़बौर देव
- गढ़बौर देव का मन्दिर राजसमंद में स्थित है।
- गढ़बौर देव का अन्य नाम- गढ़बौर चारभुजा नाथ।
- सिसोदिया वंश की कुलदेवी- बाणमाता।
- गुहिलों की आराध्य देवी- गढ़बौर माता।
गढ़बौर माता का मन्दिर राजसमंद में स्थित है।