मेवाड़ का इतिहास – 13
कुंभा की स्थापत्य कला
वीर विनोद ग्रंथ – श्यामलदास (भीलवाड़ा) द्वारा रचित
– मेवाड़ महाराणा सज्जनसिंह के दरबारी
उपाधियाँ –
– वीर विनोद ग्रंथ के अनुसार सारंगपुर युद्ध 1439 ई. में हुआ।
– वीर विनोद के अनुसार मेवाड़ में स्थित कुल 84 दुर्गों में से 32 दुर्गों का निर्माण राणा कुंभा ने करवाया इस कारण कुंभा को स्थापत्य गुरु कहा जाता है।
कुम्भा द्वारा निर्मित दुर्ग-
– कुंभलगढ़ दुर्ग – राजसमंद
– वास्तुकार – मण्डन
– चित्तौडगढ़ दुर्ग का आधुनिक निर्माता कहा जाता है।
– इस दुर्ग को कुंभा के काल में चित्रकूट कहा जाता था।
मूल निर्माता – चित्रांगद मौर्य
– चित्तौडगढ़ दुर्ग में मालवा विजय के उपलक्ष्य में 9 मंजिल विजय स्तंभ का निर्माण राणा कुंभा ने करवाया।
– विजयस्तंभ का जीर्णोद्धार मेवाड़ महारणा स्वरूप सिंह ने करवाया था।
– बैराठगढ़ का निर्माण – भीलवाड़ा
भौमट दुर्ग – उदयपुर
अचलगढ़ दुर्ग – सिरोही
बसंती दुर्ग – माउंट आबू, सिरोही
– चित्तौडगढ़ में कुंभा ने कुंभश्याम मंदिर का निर्माण पंचायतन शैली में करवाया।
– बैराठगढ़ विजय के उपलक्ष में बदनौर (भीलवाड़ा) में कुशालमाता/बदनौर माता का निर्माण करवाया।
– राणा कुंभा ने दिल्ली सुल्तान सैय्यद मोहम्मद शाह को पराजित कर दिल्ली में बिरला मंदिर का निर्माण करवाया।
– कुंभलगढ़ में मामादेव कुण्ड का निर्माण करवाया मामा देव कुण्ड सिवाणा दुर्ग – बाड़मेर में स्थित है।
– राणा कुंभा के काल में चित्तौडगढ़ दुर्ग में वेलका द्वार श्रृंगार चंवरी मंदिर का निर्माण करवाया गया।
श्रृंगार चंवरी मंदिर – जैन मंदिर
– राणा कुंभा की पुत्री रमाबाई वागीश्वरी का विवाह स्थल।
– राणा कुंभा के काल में मंत्री धारणकशाह द्वारा वास्तुकार देपाक के निर्देशन में रणकपुर (पाली) का जैन मंदिर का निर्माण करवाया गया। इस मंदिर को चौमुखा मंदिर/स्तंभों का वन इत्यादि नामों से जाना जाता है।
– राणा कुंभा का साहित्य में योगदान
कुंभा द्वारा लिखित ग्रंथ –
- संगीतराज – 5 भागों में विभक्त
(i) पाठ्यरत्न कोष
(ii) वाद्यरत्न कोष
(iii) नाट्य/नृत्य रत्न कोष
(iv) गीत रत्न कोष
(v) रस रत्न कोष
- संगीतमीमांसा
- संगीतरत्नाकार
- कामशास्त्रपरआधारित ग्रंथ – काम प्रबोध
- सूड़प्रंबंध
– एकलिंग महात्म्य:- राणा कुंभा तथा कान्हा तथा द्वारा रचित
– कुंभा द्वारा लिखित प्रथम भाग, राजवर्णन कहलाता है।
– विजयस्तंभ की 9वीं मंजिल पर राणा कुंभा ने कीर्ति प्रशस्ति की रचना करवाई।
इस प्रशस्ति की रचना कवि अत्रि ने शुरू लेकिन रचना पूर्ण उनके पुत्र कवि महेश ने की।
Note : बिरला मंदिर जयपुर
निर्माणकर्त्ता – गंगाप्रसाद बिड़ला
उत्तर भारत का प्रथम वातानुकूलित मंदिर इस सफेद संगमरमर मंदिर में लक्ष्मी नारायण की पूजा होती है।