मेवाड़ का इतिहास

 




मेवाड़ का इतिहास – 14

राणा कुंभा (1433 – 1468 ई.)

कुंभा के प्रमुख दरबारी – विद्वान – भुवनसुन्द्र (जैन विद्वान) जयचंद्र सूरी, सोमदेव सोमसुंदर, महेशचंद्र सूरी।

वास्तुकार (शिल्पी) – मण्डन, नाथा, गोविंद, पौजा, पूंजा, अत्रिभट्‌ट, महेश भट्‌ट, दाना

–  मण्डन के भाई का नाम नाथा तथा इनके ग्रंथ का नाम वास्तु मंजरी

–  मण्डन के पुत्र का नाम गोविंद

गोविंद के प्रमुख ग्रंथ – कलानिधि

उद्धार धारिणी

द्वारा दीपिका

 




–  मण्डन के प्रमुख ग्रंथ –

–  वैद्य मण्डन – इस ग्रंथ में व्याधियों, बीमारियों का निदान बताया गया है।

–  शकुन मण्डन  शकुन शास्त्र का वर्णन

–  कोदेन मण्डन – इस ग्रंथ में धनुर्विद्या के बारे में जानकारी दी गई है।

–  प्रासाद मण्डन – इस ग्रंथ में देवालय निर्माण की जानकारी दी गई है।

राजवल्लभ मण्डन – 14 अध्यायों में विभक्त ग्रंथ इस ग्रंथ से आवासीय भवन एंव राजप्रासादों के निर्माण से संबंधित जानकारी दी गई है।

–  रूपमण्डन  6 अध्यायों में विभक्त है।

–  यह ग्रंथ मूर्तिकला से संबंधित है।

 




–  छठे अध्याय में जैन धर्म की मूर्तियों से संबंधित वर्णन है।

–  रूपावतर मण्डन (मूर्ति प्रकरण)  मूर्तिकला से संबंधित यह ग्रंथ 8 अध्यायों में विभक्त है।

–  वास्तुमण्डन तथा वास्तुकार में वास्तुकला का वर्णन है।

–  राणा कुंभा की हत्या 1468 ई. में मामादेव कुण्ड के पास कुंभलगढ़ (राजसमंद) में पुत्र ऊदा द्वारा की गई।

–  मेवाड़ का प्रथम पितृहन्ता- ऊदा

–  कर्नल जेम्स टॉड ने कहा ‘’कुंभा में लाखा जैसी प्रेम कला एवं हम्मीर जैसी शक्ति थी। जिसने मेवाड़ के झंडे को घग्घर नदी के तट पर फहराया।

–  राणा ऊदा 1468 – 1473 ई. तक कुंभा की हत्या के समय ऊदा का भाई रायमल ईडर (गुजरात) में था।

–  1473 ई. में रायमल ने मेवाड़ सरदारों की सहायता से ऊदा को राजगद्दी से हटाया।

–  रायमल 1473 – 1509 ई.

–  रायमल के प्रमुख दरबारी – गोपाल भट्‌ट, महेश भट्‌ट, अर्जुन नाम का प्रख्यात पंडित

–  रायमल की पत्नी श्रृंगार देवी ने चित्तौडगढ़ दुर्ग में घोसुण्डी बावड़ी का निर्माण करवाया था।

 




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