मेवाड़ का इतिहास – 17
राणा सांगा- (1509 ई.- 1528 ई.)
- बयाना पराजय का बदला लेने हेतु बाबर ने राणा सांगा पर खानवा नामक स्थान पर आक्रमण किया।
खानवा युद्ध (17 मार्च, 1527 ई.)
- स्थान- रूपवास (भरतपुर)
- विजेता – बाबर
- इस युद्ध के पश्चात् बाबर नेगाजी की उपाधि धारण की।
- गाजी = काफिरो का नाशक।
- खानवा युद्ध से पूर्व राणा सांगा ने पाती परवन की पद्धति अपनाई।
पाती परवन:-
- सभी हिन्दू राजाओं द्वारा एक छत के नीचे एकत्रित होना।
- खानवा युद्ध में राणा सांगा का साथ देने के लिए निम्न शासक आये।
- बीकानेर – कल्याणमल, जोधपुर- गंगदेव/मालदेव, मेड़ता – रतनसिंह, मेवात – हसन खां मेवाती, ईडर- भारमल, चन्देरी- मेदिनीराय, जगनेर- अशोक परमार, रायसेन-सहलदी तँवर, सादड़ी- झाला अज्जा।
- पृथ्वीराज कच्छवाहा (आमेर), वागड़ (डूँगरपुर) उदयसिंह दोनों वीरगति को प्राप्त हुए।
- खानवा युद्ध में राणा सांगा के घायल होने के पश्चात्झाला अज्जा ने इन्हें युद्ध भूमि से बाहर कर मेवाड़ का राजमुकूट धारण किया।
- झाला अज्जा का सहयोग रावत रतनसिंह एंव मालदेव ने किया।
- बसवा (दौसा) में राणा सांगा को होश आने पर कहा “मैं जब तक बाबर को पराजित नही कर देता तब तक मेवाड़ की पवित्र धरती पर कदम नहीं रखूँगा”
- राणा सांगा के सहयोगियों ने काल्पी (P) के पास ईरीच गाँव में राण सांगा को जहर दे दिया।
- 30 जनवरी, 1528 ई. को राणा सांगा की मृत्यु (काल्पी – M.P. ईरीच गाँव) हो गई।
- राणा सांगा का दाह संस्कार माण्डलगढ़ (भीलवाड़ा) में किया गया जहाँ इनकी 8 खम्भों की छतरी का निर्माण करवाया।
- खानवा युद्ध राजस्थान इतिहास का प्रथम युद्ध है, जिसमें तोपखाना का प्रयोग किया गया ।
- तोप चलाने वाले तोपची कहलाते है।
- बाबर के तोपची- मुस्तापा अली , 2. अली खाँ
- कर्नल जेम्स टॉड व कविराजा श्यामलदास के अनुसार पराजय के प्रमुख कारण –रायसेन के शासक सलहदी तंवर युद्ध के समय विशाल सेना के साथ बाबर से मिला।
- डॉ. गोपीनाथ शर्मा के अनुसार राणा सांगा खुद युद्ध भूमि में उत्तर जाना जिससे पीछे के सैनिकों के साथ तालमेल नहीं बैठा, इस कारण राणा सांगा की पराजय हुई।
पराजय के अन्य कारण:-
- बाबर द्वारा इस युद्ध में तुलुगमा युद्ध पद्धति अपनाई जो सांगा की हार का कारण बनती है।
- राणा सांगा की पुरानी युद्ध पद्धति थी।
- राणा सांगा की सेना में एकरूपता नहीं थी।
- बाबर द्वारा तोपखाने का प्रयोग किया गया।