मेवाड़ का इतिहास – 19
– राणा सांगा के सहयोग से भारमल ईडर का शासक बना।
– 1514 ई. व 1516 ई. में गुजरात के शासक मुज्जफ्फर शाह ने निजाम-उल-मुल्क के नेतृत्व में ईडर पर असफल आक्रमण किया।
– 1520 ई. में मालिक हुसैन के नेतृत्व में मुज्जफ्फर शाह ने सेवा भेज कर ईडर पर अधिकार किया एवं निजाम-उल-मुल्क को यहाँ का प्रशासक नियुक्त किया।
– राणा सांगा ने मलिक हुसैन को पराजित कर पुन: ईडर का शासक रायमल को बनाया।
– ईडर में पुन: पराजय के पश्चात् 1520 ई. में मुज्जफ्फर शाह ने एयाज अली के नेतृत्व में वागड़ के रास्ते मेवाड़ पर आक्रमण हेतु सेना भेजी।
– इस आक्रमण के समय डुँगरपूर के शासक गज्जा लड़ते हुए मारे गए।
– गुजरात व माण्डू की सेना मेवाड़ में लुटमार करते हुए मंदसौर पहुँची जहाँ पर राणा सांगा ने 1521-22 ई. में सामना किया।
– राणा सांगा के सामने गुजरात की सेना ने आत्मसमर्पण करते हुए सांगा से संधि (एयाज अली के सहयोग से) कर ली।
– राणा सांगा के चार पुत्र थे-
- रतनसिंह
- भोजराज
- विक्रमादित्य
- उदयसिंह
¨ रतनसिंह (1528-1531 ई.)
– बूँदी शासक सुर्जनसिंह हाड़ा के साथ शिकार खेलते हुए मृत्यु हो गयी।
¨ विक्रमादित्य (1531-1536 ई.)
– यह अवयस्क शासक था।
– इनकी सरंक्षिका कर्मावती थी।
– इनके समकालीन गुजरात का शासक बहादुरशाह एवं दिल्ली का शासक हुमायूँ था।
– बहादुर शाह ने मेवाड़ पर प्रथम आक्रमण 1533 ई. में किया।
– इस आक्रमण के समय रानी कर्मावती ने बहादुर शाह को रणथम्भौर दुर्ग देकर वापस भेजा।
– हुमायूँ का कलिंजर दुर्ग पर अभियान को देखकर 1534 ई. में बहादुर शाह ने चित्तौड़गढ़ पर पुन: आक्रमण किया।
– इस आक्रमण के समय रानी कर्मावती ने विक्रमादित्य व उदयसिंह को सुरक्षित बूँदी भेजा।
– इस आक्रमण के समय मेवाड़ का नेतृत्व देवलिया (प्रतापगढ़) के सामंत रावल बाघसिंह ने किया।
– युद्ध के दौरान कर्मावती ने हुमायूँ को राखी भेज कर सैनिक सहायता माँगी लेकिन समय पर हुमायूँ ने सहायता नहीं की।
– 1534 ई. में रावल बाघसिंह लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए तथा कर्मावती ने जौहर किया जिसे मेवाड़ के इतिहास का दुसरा साका माना जाता है।
– कुछ समय के लिए चित्तौड़गढ़ पर बहादुर शाह ने अधिकार किया लेकिन हुमायूँ के आगमन का समाचार सुनकर पुन: गुजरात भाग गया।
– 1536 ई. में पृथ्वीराज सिसोदिया के दासी पुत्र बनवीर ने विक्रमादित्य की हत्या कर दी।
– बनवीर उदयसिंह को भी मारना चाहता था। लेकिन पन्नाधाय ने अपने पुत्र चंदन की बलि देकर उदयसिंह को सुरक्षित कुंभलगढ़ दुर्ग में आशा देवपुरा के पास ले गई।
– 1536 ई. में बनवीर मेवाड़ का शासक बना।