मेवाड़ का इतिहास

 




मेवाड़ का इतिहास – 20

बनवीर (1536ई.-1537ई.)

– यह पृथ्वीराज सिसोदिया (उड़ना राजकुमार) का दासी पुत्र था।

– इसने चित्तौड़गढ़ दुर्ग में तुलजा भवानी मंदिर का निर्माण करवाया।

– इसमें चित्तौड़गढ़ दुर्ग में नवकोढा भण्डार का निर्माण करवाया जिसे चित्तौड़गढ़ का लघु दुर्ग कहते है।

राणा उदयसिंह (1537ई.1572ई.)

– यह अफगानों की अधीनता स्वीकार करने वाला मेवाड़ का प्रथम शासक था।

– उदयसिंह ने शेरशाह सूरी की अधीनता स्वीकार कर मेवाड़ के दुर्गो की चाबियाँ शेरशाह के पास पहुँचाई।

– शेरशाह सूरी ने चित्तौड़गढ़ में अपना प्रतिनिधि अहमद सरवानी को नियुक्त किया।

– 159ई. में धुणी नामक स्थान पर उदयसिंह ने उदयपुर शहर की स्थापना की।

 




– उदयसिंह ने आयड नदी को रोककर उदय सागर झील का निर्माण (1559ई.-1565ई.) करवाया।

– उदयसिंह ने उदयपुर में राजपरिवार के निवास हेतु राजमहल (चन्द्रमहल) का निर्माण करवाया।

– राजमहल को फर्ग्युयसन ने विंडसर महल की संज्ञा दी।

– उदयसिंह के समकालीन दिल्ली का मुगल शासक अकबर था जिसनें उदयसिंह को अपने अधीन करने के लिए सुलह – ए-कुल की नीति अपनाई।

– अकबर ने उदयसिंह को अपनी अधीनता स्वीकार करवाने के लिए दो शिष्ट मंडल भेजे-

  1. भारमल
  2. टोडरमल

– अकबर के विरोधी बहादुर (मालवा का शासक) को उदयसिंह ने शरण दी।

– अकबर ने उदयसिंह पर आक्रमण करने के लिए Oct 1567ई. में धौलपुर से तख्शीस, चगताई खाँ, आसफ खाँ तथा हुसैन कुली खाँ के नेतृत्व में सेना भेजी।

– अकबर के तोपखाने का मुखियाँ/तोपची- कासिम खाँ था।

 




– अकबर की बंदूक का नाम संग्राम था। मोहर मगरी- चित्तौड़गढ़ दुर्ग में प्रवेश हेतु अकबर द्वारा बनवाया गया एक रेत का टीला था जिसके निर्माण हेतु प्रत्येक रेत की तगारी के बदले श्रमिकों को एक-एक स्वर्ण मुद्रा दी थी।

– अकबर की सेना ने चित्तौड़गढ़़ का घेरा डाला तथा उदयसिंह गोगुन्दा की पहाड़ियों में चले गए।

– उदयसिंह ने चित्तौड़गढ़ की रक्षा की डोर जयमल व फत्ता को सौंपी।

– उदयसिंह का पीछा करने के लिए अकबर ने हुसैन कुली खाँ को भेजा लेकिन सफलता नहीं मिली।

– अकबर ने अपनी बन्दूक संग्राम से जयमल को घायल कर दिया।

– राशन सामग्री के भाव के कारण चित्तौड़गढ़ दुर्ग के दरवाजें खोल मेवाड़ी सैनिकों ने अकबर की सेना पर आक्रमण कर दिया।

– इस युद्ध के दौरान ईसरदास चौहान ने अकबर पर भाले से वार किया लेकिन अकबर बच गया।

– अकबर का कथन – मैंने मौत को जीवन में पहली बार इतना करीब से देखा।

– जयमल मेड़तिया, कल्लाजी राठौड़, ईसरदास चौहान एवं फतेहसिंह सिसोदिया इस युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए।

– इस समय मेवाड़ इतिहास का तीसरा साका (25 फरवरी 1568ई.) हुआ।

 केसरिया फतेहसिंह

 जौहर- फूलकँवर

– 25 फरवरी 1568ई. को अकबर ने चित्तौड़गढ़ दुर्ग पर अधिकार कर लिया तथा दुर्ग का प्रशासक अब्दुल माजिद को नियुक्त किया।

– जयमल व फत्ता की वीरता से प्रभावित होकर अकबर ने आगरा के मुख्य प्रवेशद्वार पर उनकी मूर्तियाँ लगवाई।

नोट: राजस्थान में जयमल व फत्ता की मूर्तियों बीकानेर के शासक रामसिंह ने जूनागढ़ दुर्ग (बीकानेर) में लगवाई।

 




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