मेवाड़ का इतिहास

 




मेवाड़ का इतिहास – 24

(1) महाराणा प्रताप (1572ई.-1597ई.)

  निर्माण कार्य-

1.हरिहर मंदिर का निर्माण

2.चामुण्ड़ा माता का मंदिर का निर्माणचावण्ड

(2) प्रताप के काल में लिखित ग्रन्थ-

1.विश्ववल्लभ-चक्रपाणि मिश्र द्वारा

  1. राज्याभिषेक पद्धति-मूहर्त माला द्वारा




(3) हेमरतन सूरी के ग्रन्थ-

1.गौरा-बादल पद्मनी चरित चौपाई
2. सीता चौपाई
3. महिपाल चौपाई
4. अमर कुमार चौपाई

(4) दुरसा आढा 1. विरुद्ध छतरी

(5) माला सांदू 1. झूलणा

* 19 जनवरी 1597 को महाराणा प्रताप का निधन हो गया।

* महाराणा प्रताप की छतरी- बाडौली

* यह छतरी आठ खम्भों की है इसका निर्माण अमरसिंह प्रथम  ने करवाया।

* महाराणा अमरसिंह प्रथम(1597ई.-1620 ई.)

 




* राज्याभिषेक- 19 जनवरी, 1597 ई. चावण्ड़ (उदयपुर)

* मेवाड़ में इनके शासनकाल में इन्होंनें सेना को मजबूती प्रदान करने हेतू एक अलग सैन्य विभाग का गठन किया। जिसका अध्यक्ष हरिदास झाला को बनाया गया।

* अमरसिंह प्रथम ने शक्तावतों व चूण्ड़ावतों की प्रतिस्पर्द्धा को रोकने हेतू सर्वप्रथम जागीर व सांमतों के  लिए विधि-विधान बनाई गई।

*  अकबर ने 1599ई. में जहाँगीर के नेतृत्व में मेवाड़ पर आक्रमण के लिए सेना भेजी।

*  जहाँगीर ने 1605ई. में (अकबर की  मृत्यु के बाद) आसिफ व जफर खाँ को सेना देकर अमरसिंह प्रथम के विरूद्ध भेजा जो असफल रहा।

* 1609 ई.   में अब्दुल्ला के नेतृत्व में मुगल सेना ने मेवाड़ पर आक्रमण किया जो असफल रहा।

* 1612 ई. में मुगल सेना ने राजा बासु के नेतृत्व में मेवाड़ पर आक्रमण किया, यह भी असफल रहा।

* 1613 ई.  में जहाँगीर स्वयं ने मेवाड पहॅुचा, इस समय जहाँगीर का सेनापति शाहजहाँ (खुर्रम)था।

 




* इस समय अमरसिंह चावण् को छोड़कर गोगुन्दा की पहाडियों  में चले गए।

* 1613 ई.  में मुगल सेना ने चावण्ड़ व मेरपुर पर अधिकार   कर लिया।

3 माह पश्चात् मेवाड़ से जहाँगीर अजमेर चले गए।

नोट:- चावण्ड 1997-1613 ई. तक मेवाड़ की राजधानी रही।

  • मुगल सेना द्वारा लम्बे समय तक मेवाड़ में घेरा डाले रखने के कारण मेवाड़ की आर्थिक स्थिति खराब होने लगी।
  • अमरसिंह प्रथम ने अपनी इच्छा के विरुद्ध हरिदास झाला एवं शुभकर्ण को संधि वार्ता हेतु शाहजहाँ के पास भेजा।
  • शाहजहाँ ने इस प्रस्ताव को स्वीकार करतू हुए शक्रुल्लाह शीराजी व सुन्दरदास को जहाँगीर से अनुमति लेने हेतु अजमेर भेजों।
  • मेवाड, मुगल संधि- 5 फरवरी, 1615 गोगुन्दा(उदयपुर) जहाँगीर के प्रतिनिधि शाहजहाँ व अमरसिंह प्रथम की और से हरिदास झाला व शुभकर्ण के मध्य हुई।




शर्तें-

  1. महाराणा स्वयं मुगल दरबार में उपस्थित नहीं होकर इनका पुत्र उपस्थित होगा।
  2. वैवाहिक संबंध स्थापित नहीं होगा।
  3. चितौड़गढ दुर्ग अमरसिंह को सौपा लेकिन निर्माण कार्य नहीं करवा सकेगा।
  4. महाराणा शाही सेना में 1000 सैनिक रखेगा।
  • 19 फरवरी, 1615 को शाहजहाँ कर्ण सिंह को ले  जाकर बादशाह जहाँगीर की सेवा में उपस्थित किया।
  • मुगल की अधीनता स्वीकार करने वाला मेवाड़ का प्रथम शासक अमरसिंह प्रथम था।
  • कर्नल जेम्स टॉड- अमरसिंह प्रथम प्रताप व इस वंश के सुयोग्य वंशधर थे।
  • जी.एच. ओझा- अमरसिंह प्रथम को वीर पिता का “वीर पुत्र” कहा।
  • अमरसिंह प्रथम का काल मेवाड़ काल का निर्माण काल कहलाता है।
  • 26 जनवरी, 1620 अमरसिंह प्रथम की आहड़ (उदयपुर) में मृत्यु हो गई ।

 




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