मेवाड़ का इतिहास

 




मेवाड़ का इतिहास – 29

जवान सिंह (1828-1838 ई.)

– इनके द्वारा उदयपुर में जल निवास महलों का निर्माण करवाया गया।

– नेपाल में गुहिल वंश के शासक राजेन्द्र विक्रमशाह इनके काल में मेवाड़ आए।

– इनके शासनकाल में भारत के गवर्नर जनरल विलियम बैंटिक अजमेर यात्रा पर आए जहाँ जवानसिंह ने बैंटिक से मुलाकात की।

– 1838 ई. में इनकी निसंतान मृत्यु हुई।

सरदार सिंह (1838-1842 ई.)

– बागोर के सामंत शिवदान सिंह के पुत्र।

– इनके शासनकाल में मेवाड़ भील कौर का गठन किया गया।

– इसका मुख्यालय 1841 ई. में खैरवाड़ा (उदयपुर) था।

– कमाण्डर – जे. सी. ब्रुक

मेवाड़ भील कोर का प्रमुख कार्य – भीलों पर नियंत्रण स्थापित करना।

– 1842 ई. में सरदारसिंह की मृत्यु हुई।

 




महाराणा स्वरूप सिंह (1842-1861 ई.)

– सरदार सिंह के दत्तक पुत्र।

– इनके द्वारा कराए गए निर्माण कार्य –

गोवर्धन विलास महल

गोवर्धन सागर का निर्माण

पशुपातेश्वर महादेव मंदिर का निर्माण

जगत शिरोमणि मंदिर का निर्माण

स्वरूप सागर झील का निर्माण

ओधड़ा महल का निर्माण

सभी निर्माण उदयपुर में कराए गए।

 




– इनके शासन काल में 1844 ई. में मेवाड़ में कन्यावध पर प्रतिबंध लगाया गया।

– 1853 ई. में इनके शासनकाल में मेवाड़ भील कौर के कमाण्डर जे. सी. ब्रुक ने डाकण प्रथा पर रोक लगाई।

– 15 अगस्त, 1861 ई. को समाधि प्रथा पर मेवाड़ में रोक लगाई गई।

– 1857 ई. की क्रांति के समय शासक स्वरूपसिंह थे।

– स्वरूप सिंह 1857 की क्रांति के समय मेवाड़ के P. A. मेजर शॉवर्स एवं अन्य अंग्रेजों को पिछोला झील स्थित जगमंदिर में शरण दी।

– स्वरूपशाही चाँदी के सिक्के चलाए।

– यह सिक्के चार प्रकार के थे।

इन सिक्कों के अग्रभाग पर दोस्तीलंधन एवं पृष्ठ भाग पर चित्रकूट शब्द अंकित था।

– 1861 ई. में स्वरूपसिंह की मृत्यु हुई। इनके साथ पासवान ऐंजाबाई सती हुई।

मेवाड़ राजघराने में सती की अंतिम घटना।

– महाराणा स्वरूपसिंह ने विजयस्तंभ का जीर्णोद्धार करवाया था।

 




शंभु सिंह (1862-1874 ई.)

– अवयस्क शासक

– इनके काल में शासन कार्य पंचसरदारी कौंसिल द्वारा चलाया गया।

– इस कौंसिल का गठन मेवाड़ के P.A मेजर टेलर ने किया था।

– इनके शासनकाल में हैजा नामक महामारी फैली

– शंभु पलटन नाम से नई सेना का गठन किया।

– शंभु सिंह को अंग्रेजों द्वारा ग्राण्ड कमाण्ड ऑफ द स्टार ऑफ इण्डिया (GSCI) की उपाधि प्रदान की गई।

 




महाराणा सज्जनसिंह (1874-1884 ई.)

– 1876 ई. में सज्जन कीर्ति सुधारक समाचार पत्र का प्रकाशन करवाया। यह साप्तहिक समाचार पत्र था। यह मेवाड़ राज्य का प्रथम समाचार पत्र था।

– 2 जुलाई, 1877 को इनके शासन काल में देश हितैषणी सभा का गठन किया गया।

– छोटे न्यायिक मामलों को सुलझाने हेतु इजलास सभा का गठन सज्जनसिंह द्वारा श्यामलदास की सलाह पर किया गया। इस सभा में कुल 15 सदस्य होते थे।

– पक्षपात पूर्ण न्याय को मिटाने एवं उचित प्रबंधन हेतु 20 अगस्त, 1880 ई. में 17 सदस्यीय महेन्द्रराज सभा का गठन महाराणा सज्जनसिंह द्वारा किया गया।

– कानून व्यवस्था के प्रबंध हेतु अलग से पुलिस विभाग का गठन किया गया।

– प्रथम पुलिस अधीक्षक अर्ब्दुरहमान खाँ को बनाया गया।

– उदयपुर सज्जन मंत्रालय (प्रिटिंग-प्रेस) की स्थापना की गई।

 




– बन्सधरा पहाड़ी पर सज्जन निवास महल का निर्माण करवाया गया। अन्य निर्माण कार्य-

सज्जन पैलेस

उदयपुर की मुकुटमणि

वाणी विलास

मानसून पैलेस

– स्वामी दयानंद सरस्वती सज्जनसिंह के शासनकाल में उदयपुर आए।

दयानंद सरस्वती ने सत्यार्थ प्रकाश ग्रंथ की रचना उदयपुर में की तथा प्रकाशन अजमेर में किया गया।

– भारत के गर्वनरल जनरल एण्ड वायसराय नार्थबुक (उदयपुर आने वाले प्रथम गर्वनर जनरल) सज्जनसिंह के शासनकाल में उदयपुर आए।

– सज्जनसिंह को गर्वनर जनरल रिपन के द्वारा मेवाड़ आकर ग्राण्ड कमाण्डर ऑफ द स्टार ऑफ इण्डिया (GSCI) की उपाधि से सम्मानित किया गया।

– मेवाड़ में 1881 ई. में जनगणना कार्य किया गया।

– आर्य समाज की परोपकारिणी सभा के सभापति सज्जनसिंह बने।

– सज्जनसिंह के दरबारी कवि श्यामलदास थे। सज्जन सिंह ने श्यामलदास को कविराजा की उपाधि दी।

– 1884 ई. में सज्जनसिंह की मृत्यु हुई।

 




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