मेवाड़ का इतिहास

 




मेवाड़ का इतिहास – 30

महाराणा फतेहसिंह (1884-1930)

–  शिवराती के शासक दलेसिंह के पुत्र।

–  फतेहसिंह राजगद्दी पर 23 दिसम्बर, 1884 ई. को आसीन हुए।

–  इनका राज्याभिषेक 23 जनवरी, 1885 ई. को हुआ।

–   1887 ई. में सज्जनबाग में विक्टोरिया हॉल का निर्माण फतेहसिंह ने करवाया।

–  1889 ई. में ड्यूक ऑफ कनॉट के राजकुमार उदयपुर आए जिनके हाथों से फतेहसागर झील की नींव रखवाई।

–  फतेह सागर झील को कनॉट झील/कनॉट बाँध भी कहते है।

 




–   1890 ई. में ड्यूक ऑफ कनॉट के राजकुमार एलबर्ट विक्टर उदयपुर यात्रा पर आए। इन्होंने मेवाड़ की “वाल्टरकृत राजपूत हितकारिणी सभा” की स्थापना की।

–  1899 ई. में छपन्नया अकाल पड़ा। (विक्रम सवंत 1956)

–  वर्ष 1903 में एड्वर्ड सप्तम के राजगद्दी पर बैठने की खुशी में लार्ड कर्जन ने समस्त राजाओं के स्वागत हेतु दिल्ली दरबार का आयोजन किया।

–  इस दरबार में शामिल होने के समय केसरी सिंह बारहठ द्वारा रचित 13 सोरठे (चेतावनी रा चुंगट्या) मेवाड़ के फतेहसिंह को भेजे गए जिसे सुनकर बिना दरबार में सम्मिलित हुए फतेहसिंह वापस मेवाड़ लौट आए।

–  1904 ई. में फतेहसिंह के शासनकाल में प्लेग महामारी फैली।

–  वर्ष 1911 में लार्ड मिण्टो (गर्वनर जनरल) उदयपुर आगमन पर उदयपुर में मिण्टो दरबार हॉल का निर्माण फतेहसिंह ने करवाया था।

–  वर्ष  1911 में जार्ज पंचम के राज्याभिषेक उत्सव के रूप में दिल्ली पहुँचे लेकिन दरबार में शामिल नहीं हुए।

–  प्रथम विश्वयुद्ध में अंग्रेजों का सहयोग मेवाड़ शासक फतेहसिंह ने किया।

 




–  प्रथम विश्व युद्ध के समय एक सैन्य टुकडी ‘मेवाड़ लांसर्स’ का गठन किया गया।

–  वर्ष 1918 ई. में फतेहसिंह के शासनकाल में इन्फ्लूएजा नामक महामारी फैली।

–  प्रथम विश्वयुद्ध में अंग्रेजो के सहयोग के कारण इनके राजकुमार भूपाल सिंह को नाइट कमाण्डर ऑफ इण्डियन एम्पायर की उपाधि मिली।

–  इस उपाधि को पाने वाले पहले राजकुमार

–  1921 ई. में फतेहसिंह ने मेवाड़ का अधिकांश राजकार्य भूपाल सिंह को सौंप दिया।

–  कविराज श्यामलदास के ग्रंथ वीर विनोद पर रोक लगाई।

–  फतेह प्रकाश महल का निर्माण चित्तौड़गढ़ में करवाया गया।

–  मेवाड़ के प्रथम महाराणा जिन्होंने केवल एक विवाह किया।

–  सज्जनगढ़ पैलेस का निर्माण पूर्ण करवाया।

–  1930 ई. में फतेहसिंह की मृत्यु हुई।

 




महाराणा भूपालसिंह (1930-18 अप्रैल 1948)

–  मेवाड़ के अंतिम शासक/राजस्थान के एकीकरण के समय शासक

  इन्ही के शासनकाल में अधिकांश किसान आंदोलन व प्रजामण्डल आंदोलन हुए।

  18 अप्रैल, 1948 को एकीकरण पर हस्ताक्षर कर संयुक्त राजस्थान के राजप्रमुख बने।

  एकमात्र महाराज प्रमुख भूपालसिंह बने।

  आहेड़ा – राजपूताना/मेवाड़ में होली के दिन खेले जाने वाला शिकार।

  अमर बलेणा- मेवाड़ महाराणाओं द्वारा किसी व्यक्ति को सम्मान स्वरूप दिया जाने वाला घोड़ा।

  सीख सिरोपाव – दशहरे के दिन सरदारों द्वारा सेवा पूर्ण कर अपने घर की तरफ प्रस्थान करना।

  जमीयत- मेवाड़ के सरदारों/सांमतो की सेना।

 




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