मेवाड़ का इतिहास

 




मेवाड़ का इतिहास-10

राणा कुम्भा – 1433 – 1468 ई.

– राणा कुम्भा के पिता के हत्यारें (चाचा मेरा, महपा पंवार व अक्का) कुम्भा के शासक बनते ही मालवा के शासक मुहमद खिलजी – I के शरण में चले गए

– राणा सांगा ने मुहमद खिलजी – I पर आक्रमण किया।

सांरगपुर का युद्ध – 1437 ई. – M.P =

– राणा कुम्भा व महमुद खिलजी – I के मध्य

– विजेता – राणा कुम्भा

– कुम्भा की इस विजय को मालवा विजय कहा तथा इस विजय के उपलक्ष में चित्तैड़गढ दुर्ग में विजय स्तम्भ का निर्माण करवाया।

 




राठौड़ों के बढ़ते प्रभाव को रोकना =

– मालवा अभियान के दौरान सिसोदिया सरदार राघवदेव (लाखा का पुत्र) एवं रणमल के बीच विवाद हो गया जिसके तहत राघव देव की हत्या रणमल ने कर दी ।

– इस घटना के बाद मेवाड़ में राठौड़ों की प्रबलता बढ़ने लगी जिससे मेवाड़ के सरदार असंतुष्ठ थे।,

– 1438 ई. में दासी भारमली की सहायता से राणा कुम्भा ने रणमल राठौड़ की हत्या कर दी।

– रणमल के पुत्र जोधा मेवाड़ को छोड़कर मण्डोर (जोधपुर) आ गये।

– राणा कुम्भा ने जोधा का पीछा करने हेतु राणा चूँड़ा को भेजा लेकिन जोधा ने मण्डोर छोड़ दिया।

– हंसाबाई के सहयोग से राव जोधा व राणा कुम्भा के मध्य आंवल – बांवल की सन्धि (1452 – 53 ई.) हुई।

– यह सन्धि सोजत (पाली) नामक स्थान पर हुई।

– इस सन्धि के तहत मेवाड़ व मारवाड़ की सीमाओं का निर्धारण हुआ।

 




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